Book Title: Gagar me Sagar
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 69
________________ 1 गागर में सागर ६६ पुरुष तो गंजे बहुत 'देखे होंगे पर महिला एक गंजी नहीं देखी होगी । क्या आप जानते हैं कि पुरुष ही गंजे क्यों होते हैं, महिलायें क्यों नहीं ? · महिलाओं के सिर पर उड़ने के लिए साड़ी का पल्लू सदा विद्यमान . रहता है, पर पुरुषों के सिर पर उड़ने के लिए कोई बाहरी वस्तु देखने में नहीं आती, अतः उनके बाल ही उड़ने लगते हैं । अभी तो बाल ही उड़े हैं, जब बाल भी न रहेंगे तो क्या उड़ेगा ? - यह समझने की बात है; अत: समझदारी इसी में है कि हमें उड़ने के लिए कोई एक बाहरी वस्तु सिर पर अवश्य रखना चाहिये । जो भी हो, यह बात तो बीच में यों ही आ गयी थी। अपनी बात तो यह चल रही है कि कोई भी व्यक्ति ड्रेस से अप टू डेट नहीं होता, अपितु अपने विचारों से अप टू डेट होता है । यदि ड्रेस से अप टू डेट मानें तब भी भगवान महावीर प्राउट ऑफ डेट नहीं हो सकते, क्योंकि वे विदाउट ड्रेस थे । धोती-कुर्ता पहनता हूँ और आप लोग सूट-पैण्ट; पर यह अन्तर तो मात्र ड्रेस का है, ड्रेस के भीतर विद्यमान शरीर तो सबका एक सा ही है । इस पर कोई कह सकता है कि शरीर में भी तो अन्तर देखने में आता है कि कोई गोरा है, कोई काला; कोई मोटा है, कोई पतला ; कोई लम्बा है, कोई ठिगना । हाँ, शरीर में भी अन्तर है; पर शरीर के भीतर विद्यमान भगवान आत्मा तो सबका एक जैसा ही है । भाई ! जितना भेद दिखाई देता है, अन्तर दिखाई देता है, वह सब ऊपर-ऊपर का ही है; अन्तर की गहराई में जाकर देखें तो एक महान समानता के दर्शन होंगे । हाँ, तो मूल बात तो यह है कि कोई व्यक्ति ड्रेस से महान नहीं होता है, अपितु अपने विचारों से महान होता है । भगवान महावीर ने अहिंसा का जो उपदेश श्राज से पच्चीस सौ वर्ष पूर्व दिया था, उसकी जितनी आवश्यकता आज है, उतनी महावीर के जमाने में भी नहीं थी, क्योंकि आज हिंसा ने भयंकर रूप धारण कर लिया है । कहते हैं कि पहले लोग लाठियों और पत्थरों से लड़ा करते थे । लाठियों और पत्थरों से लड़नेवाले अस्पताल पहुँचते हैं, श्मशान नहीं । तात्पर्य यह है कि वे घायल होते हैं, मरते नहीं । फिर तलवार का जमाना आया, पर तलवार की मार भी चार हाथ तक ही होती है, कोई व्यक्ति


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