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भगवान महावीर और उनकी अहिंसा
ऐसो कोई न कोई घटना आपके बचपन में भी अवश्य घटी होगी । भाई ! जो प्यारा बचपन चला गया, वह तो लौटकर वापिस आ नहीं सकता, फिर भी वह हमारे ध्यान में तो श्राता ही है, ज्ञान में तो श्राता ही है । ठीक इसीप्रकार भगवान महावीर भी, जो पच्चीस सौ दश वर्ष पूर्व सिद्ध अवस्था को प्राप्त हो चुके हैं, अब इस संसार में लौटकर वापिस नहीं आ सकते; फिर भी हमारे ज्ञान में तो आ ही सकते हैं, ध्यान में तो आ हो सकते हैं ।
अतः यहाँ प्रार्थना की गई है कि -
हमारे ध्यान में ॥"
"धे वर्द्धमान महान जिन विचरें आखिर क्यों ? जबकि आज का जमाना इतना बेदर्द हो गया है कि मौत कोई मायना नहीं रखती । सड़क के किनारे कोई व्यक्ति मरा या अधमरा पड़ा हो तो उसे देखते हुए हजारों लोग निकल जाते हैं; पर कोई यह नहीं सोचता कि यदि यह मर गया है तो इसके घरवालों को खबर कर दें, यदि अधमरा है तो अस्पताल ही पहुँचा दें, शायद बच जावे । सब यों ही देखते हुए निकल जाते हैं, जैसे कुछ हुआ ही न हो ।
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आज का यह आदमी न मालूम कैसा बेरुखा हो गया है कि मौत का समाचार इसके हृदय को आन्दोलित ही नहीं करता । प्रतिदिन प्रातः काल लोग चाय पीते-पीते समाचार-पत्र पढ़ते हैं। मजे से चाय पीते जाते हैं और पढ़ते जाते हैं कि बिहार में भयंकर बाढ़ आई है, जिसमें एक लाख लोग मारे गये हैं और दश लाख लोग बेघरबार हो गये हैं ।
यह समाचार पढ़ते समय इनका हाथ नहीं काँपता, इनके हाथ से चाय का प्याला नहीं छूटता, फूटता भी नहीं है । लोग बड़े ही मजे से चाय पीते जाते हैं और पड़ोसी को समाचार सुनाते जाते हैं कि मुना भाईसाहब आपने ! बिहार में भयंकर बाढ़ आई है, एक लाख लोग मारे गये हैं और दश लाख बेघरबार हो गये हैं । यह समाचार वे ऐसे चटकारे ले लेकर सुनाते हैं, जैसे उनके नगर में कोई नया सर्कस आया हो और वे उसका समाचार सुना रहे हों। यह बात कहते हुए उनके चेहरे पर कोई पीड़ा का निशान नहीं होता ।
तात्पर्य यह है कि थाज के श्रादमी में मौत के प्रति वह संवेदनशीलता नहीं रही है, जो एक जमाने में थी । भाई ! एक जमाना वह था, जब किसी मुहल्ले में यदि गाय मर जाती थी तो सारा मुहल्ला