Book Title: Gagar me Sagar
Author(s): Ratanchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 39
________________ गागर में सागर ३६ यही बात यहाँ ज्ञानसमुच्चयसार की गाथा ५६ में तारणस्वामी कहते हैं कि हे आत्मन् ! तू शुद्ध है, सर्वशुद्ध है, मलिनता तुझे छू भी नहीं गई है। तू सर्वज्ञस्वभावो है, सवको जानने का तेरा सहज स्वभाव है । आज यदि इस पामर पर्याय ने निजात्मा के शुद्धस्वभाव और सर्वज्ञ स्वभाव को नहीं जान पाया, तो इतने मात्र से उसका शुद्ध स्वभाव और सर्वज्ञस्वभाव समाप्त थोड़े ही हो गया । __ हमें अपने आत्मा के सम्पूर्ण वैभव से भलीभांति परिचित होना चाहिए । इसकी महानता में हमारी चित्तवृत्तियाँ उसीप्रकार उल्लसित होना चाहिए, जिसप्रकार जगत में कोई निधि मिल जाने से हम उल्लसित हो उठते हैं। आनन्द के रसकन्द, ज्ञान के घनपिण्ड, अनन्त शक्तियों के संग्रहालय, शान्ति के सागर इस भगवान प्रात्मा की महिमा से हमारा चित्त इतना अभिभूत हो जाना चाहिए कि 'भगवान आत्मा' शब्द सुनते ही हम रोमांचित हो उठे, गद्गद् हो जायें । तभी समझना कि हम आत्माथिता की ओर बढ़ रहे हैं। किसी बहू के बाल-बच्चा होना हो । वह प्रसूतिगृह में हो और बाहर घरवाले बड़ी ही उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रहे हों। प्रसूतिगृह से बच्चे के रोने की आवाज आए तो सभी एकदम सतर्क हो उठते हैं, यह जानने के लिए कि क्या हुआ है- बच्चा या बच्ची? क्योंकि बच्चे के रोने की आवाज से यह तो स्पष्ट हो हो गया है कि प्रसूति सानन्द सम्पन्न हो गई है। नर्स के दरवाजा खोलते ही सब एकदम उधर को दौड़ते हैं और बड़ी ही उत्सुकता से पूछते हैं कि क्या हुआ ? पर जब नर्स कहती है - "पहले मुंह मीठा कराओ, तब बतायेंगे।" यह सुनकर ही लोग एकदम प्रफुल्लित हो उठते हैं, क्योंकि वे इतने मात्र से ही समझ जाते हैं कि बच्चा हुआ है, क्योंकि इस दहेज के जमाने में बच्ची के होने पर मिठाई मांगने की हिम्मत भी कौन कर सकता है ? मिठाई का नाम सुनते ही सब आनन्दित हो उठते हैं, उनके चित्त में वे सभी चित्र उपस्थित हो जाते हैं कि बच्चा बड़ा होगा, पढ़ेगा, शादी होगी, बारात जावेगी, वह आवेगी, और न जाने किन-किन कल्पनाओं में मग्न हो जाते हैं, क्योंकि वे पुत्र की महिमा से तो पहले से ही अभिभूत हैं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104