Book Title: Epigraphia Indica Vol 04
Author(s): E Hultzsch
Publisher: Archaeological Survey of India

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Page 330
________________ 275 No. 39.] VILAPAKA GRANT OF VENKATA I. 78 लामाशंसमानास्मदा सेवंते वृषशइलता76 मधिगता[:"] श्रीवेंक[ट]द्रिीखरं । [२६] वाराशिगांभी. 77 यविशेषधुर्यचौराशिदुर्गकविभा[क]वर्यः । प. 78 राष्टदिग्रायमन:प्रकामभयंकरः 'चार्डध[२]i79 तरंगः । [२७] हरिपुरनिमेषानीकहो याचकानां 80 होसबिरुदरगंडी रायराहुत्तमिंड: । महि81 तचरितधन्यो मंनियान् सासुलादि. (1) प्रकटि82 तबिरुदश्री: पाटितारातिलोकः । [२८] सार[वीर83 रमया समुबसन् पारवोटिपुरहारना. Third Plate ; Second Side. 84 यकः । कुंडलीखरमहाभुजः'] श्रयन् मंडली85 कधरणीवराहतां । [२८] वेंगत्रिभुवनीमम[:"] सं86 ख्यक्षितिकलार्जुन: । उरिगोलसुरवाणो हरिगो87 चरमानस: । [२०] राज्ञां वरो रणमुखरामभद्र इति 88 शुतः । वनितभिरुदो' नानावनंत्रीमंडलीकगं[ड] 89 इति ।' [२१] भात्रेयगोत्रजानामग्रसरो भूभुलामु दारयशाः । पतिविरुदतरगट्टो मतिगुरुरा रहमगधमान्यपदः । [३२] शख्यारिनीतिशाली क. 92 स्याणपुराधिपः कलाचतुरः । चाळिवचक्रव. 93 ती माणिक महाकिरीटमहनीयः । [३१] एविरुदरा94 यराहुत वे] स्यैकभुजंगबिरुदभरितथीः । रम्य95 तरकीत पोड्डियरायदिशापट्टबिरुदघोषेण । [३४] 96 10ोषधिपत्यपमाइतगंडस्तो[ष*] वरूपजितासम97 कांडः । "भाषगतप्युवरायरगंड: पोषरनिर्भर98 भूनवखंडः । [३५] राजाधिराजविरुदो रावराजसम[f]99 [हिति: । मूलराय[र गंडांकी मेरुलंधियशोभर: [1] [३१] 100 परदारषु विमुखः (0) पररायभयंकरः । शिष्ट101 संरचयपरो दुष्टमादलमर्दनः । परीभगंड +Bad बवा. • Read चौरासि. • Red "समार. • Read श्रुत:This verse consists of helffldita and half an dryd. Bad वीतिरीबि . - Rnd 'मायित. • Read जाई. • Rond बर्षितविपदी नानावई • Read वैक. 1 Read भाषेगे. 2x2

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