Book Title: Doha Ppahudam
Author(s): H C Bhayani, Ramnik Shah, Pritam Singhvi
Publisher: Parshva International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 15
________________ दोहा - पाहुड (Text and Sanskrit Chāyā) गुरु दिrयरु गुरु हिमकिरणु गुरु दीवउ गुरु देउ । अप्पो परहो परप्परहो, जो दरिसावइ भेउ ॥ १ ॥ गुरु: दिनकरः गुरुः हिमकिरणः गुरुः दीपकः गुरुः देवः । आत्मनः परात् परस्य यः दर्शयति भेदं ॥ अप्पायत्तउ जं जे सुहु, तेण जे करे संतोसु । पर - सुहु वढ चिंतंताहुं, हियए ण फिट्टइ सोसु ॥ २ ॥ आत्मायत्तं यद् एव सुखं तेन एव कुरु संतोषं । पर- सुखं मूर्ख चिन्तयतः, हृदये न नश्यति शोषः ।। , जं सुहु विसय - परम्मुहउं णिय- अप्पा झायंतु । तं सुहु इंदु विणउ लहइ, देविहिं कोडि रमंतु ॥ ३ ॥ यद् सुखं विषय परान् मुखं निज-आत्मानं ध्यायतम् । तद् सुखं इन्द्रः अपि नैव लमते देवीनां कोट्या रममाणः ॥ , आभुंजंता विसय- सुहु, जे ण वि हियए धरंति । ते सासय- सुहु लहु लहहिं जिणवर एम भांति ॥ ४ ॥ आभुंजंतः विषय-सुखं, ये नैव हृदये धरंति । शाश्वत सुखं लघु लभंते, जिनवराः एवं भांति ॥ , मनः ण विभुंजंता विसय - सुहु, हियडए भाउ धरंति । सालिसित्थु जिवं वप्पुडा, णर णरयहिं णिवति ॥ ५ ॥ ? नैव भुंजंत: विषय - सुखं हृदये भावं धरंति । शालिसिक्थः यथा वराक:, नराः नरके निपतंति ॥ आएहिं अडवड- वडवडहिं, पर रंजिज्जइ लोउ । " मण - सुद्धहिं णिच्चल-ठियहिं पाविज्जइ पर - लोउ ।। ६ ।। एभिः व्यर्थ - जल्पनैः, पर रज्यते लोकः । - शुद्धैः निश्चल - स्थितैः प्राप्यते पर- लोकः ॥

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