Book Title: Doha Ppahudam
Author(s): H C Bhayani, Ramnik Shah, Pritam Singhvi
Publisher: Parshva International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 63
________________ दोहा-पाहुड एक तो वाट जाणता नथी, बीजुं कोईने पूछता नथी. डुंगरमां आडाअवळा आथडता माणसो जो. ११४ रस्तो छोडीने (रस्ताथी दूर) जे वृक्ष महोर्यु ते एळे गयुं, (कारण) थाक्या मुसाफरोने विसामो न मळ्यो के न फळ हाथ लाग्यां. ११५ छ दर्शननी जंजाळमां पडीने मननी भ्रांति भांगी नहीं. एक देवनां छ रूप कर्यां, तेथी मोक्षमां जता नथी. ११६ एक पोतानी जातने छोडीने अन्य कोई वेरी नथी, जेणे (पोते) कर्म उत्पन्न कर्यां छे (अने) ते ज कर्मनो नाश करी शके छे. ११७ जो वारुं छु तो पण त्यां (विषयमां) ज जाय छे, पण आत्मामां मन लगडतो नथी. विषयना कारणे जीव नरकनां दुःखो सहन करे छे. ११८ हे जीव ! एम न मानीश के 'मारा विषयो मारा थशे.' किंपाकफळनी जेम ते तने दुःख आपशे. ११९ हे जीव ! तुं विषयो- सेवन करे छे. जेम घीना संगथी अग्नि प्रज्वळे छे तेम दुःख आपनार तेवा विषयोना संगथी तुं अत्यंत दुःखी थाय छे. १२० जेणे अशरीर(आत्मतत्त्व)नुं शरसंधान कर्यु ते साचो धनुर्विद्यानो निपुण कहेवाय. जेणे शिवतत्त्वनी साथे संधान कर्यु ए निश्चित रहे छे. १२१ हे सखि ! ते दर्पण शुं कामनुं जेमां पोतानुं प्रतिबिंब देखाय नहीं ? मने आ जगत एक जंजाळ भासे छे, (ज्यां) घरमा रहेवा छतां घरधणी देखातो नथी! १२२ जेनुं मन पांचे इन्द्रियो सहित मरी गयुं छे तेने जीवतो छतां मुक्त जाणवो. तेणे निर्वाणनो मार्ग मेळवी लीधो छे. १२३ काळ जतां नाश पामे एवा घणा अक्षरो(शास्त्र)थीशुं? जे रीते अनक्षर बनाय एवा पदने जाणः हे मूढ ! तेने मोक्ष कहे छे.. १२४

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