Book Title: Doha Ppahudam
Author(s): H C Bhayani, Ramnik Shah, Pritam Singhvi
Publisher: Parshva International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 64
________________ दोहा-पाहुड ५० छ दर्शननां शास्त्रो लईने (लोक) अन्योन्य खूब गर्ने छे. जे हेतु छे ते तो एक ज छे पण (लोक) विपरीत स्वरूपे समजे छे. १२५ . हे मूर्ख ! सिद्धांत-पुराणोने समज. समजनारने भ्रांति रहेती नथी. जे निश्चय आनंदपूर्वक गयो तेने सिद्ध कहे छे. .१२६ शिव अने शक्तिनो मेळाप तो आ जगतमां पशुओमां पण होय छे. पण शक्ति शिवथी भिन्न छे ते तो कोई विरला ज समजे छे. १२७ पोताना शरीरथी परमात्मा जुदो छे ए जेणे जाण्युं नथी तेवो अंध बीजा अंधोने मार्ग शुं देखाडे? १२८ हे जोगी ! देहथी जुदा तारा आत्मानुं ध्यान कर . जो तुं देहने आत्मा मानतो होय तो निर्वाण पामी शकीश नहीं... १२९ मोटुं छत्र मेळवीने (छत्रधारी राज बनीने) पण तुं सघळो समय संतापमां रहे छे. पोताना देहमा रहेनाराने माटे तुं पाषाणनां मंदिरो बनावरावे १३० ...........(?), सघळो समय तुं संतापमां रहे छे. पोताना देहमा रहेनाराने (शोधवा) माटे तुं खाली मठ सेवन करे छे ! १३१ हे जोगी ! जगमां रागना प्रसारथी, छ रसथी अने पांच रूपथी जेनुं चित्त रंगायुं नथी तेने मित्र बनाव. १३२ सघळा विकल्पो छोडीने आत्मामां मन लगाड, तेमां तुं निरंतर सुख मेळवीश, शीघ्र संसार तरी जईश. . १३३ अरे जीव ! विषय-कषाय छोडीने जिनवरमां मन स्थिर कर, तो तुं दुःखने विदाय करी सिद्धिरूपी महानगरीमा प्रवेश करीश. . १३४ हे मुंडितोना य मुंडित ! तें माथु मूंड्युं पण चित्त न मूंड्युं. जेणे चित्तनुं मुंडन कर्यु तेणे संसारनुं खंडन कर्यु. १३५ छे!

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