Book Title: Doha Ppahudam
Author(s): H C Bhayani, Ramnik Shah, Pritam Singhvi
Publisher: Parshva International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 61
________________ ४७ ९६ दोहा-पाहुड न राजी था, न रीस कर, न क्रोध कर. क्रोधथी धर्म नाश पामे छे. धर्म नष्य थवाथी नरकमां गति थाय छे. अने एम मनुष्य-जन्म एळे जाय छे. ९३ साडा त्रण हाथनी देरी छे. तेमां वाळनो य प्रवेश (शक्य) नथी. शांत निरंजन (देव) तेमां वसे छे. निर्मळ थईने (तेने) शोधी काढ. थइन (तन) शाधा काढ. ९४ मनने तरत पार्छ वाळीने आत्माने अन्य तत्त्वोमां मळवा न दे.- जेनी आटलीय शक्ति न होय ते मूर्ख योगी शुं करवानो हतो? ९५ __ हे जोगी ! ते जोगी छे जे निर्मळ योगमां मननो संयोग करावे. पण जे इन्द्रियोने वश थाय छे ते तो आ लोकमां पशु ज छे. - हे मूढ ! जेना(उच्चारण)थी ताळवू सुकाई जाय एवं घणुं भण्यो. पण जेनाथी शिवपुरि जई शकाय तेवो एक ज अक्षर छे - ते भण. ९७ शास्त्रोनो पार नथी, समय थोडो छे अने आपणे दुर्बुद्धि छीए. माटे ते ज शीखवू जोईए जे जन्ममरणनो क्षय करे. ९८ निर्लक्षण, स्त्रीबाह्य अने अकुलीन एवो (प्रियतम) मारा मनमां स्थिर थयो छे. तेना माटे ........ (?) आणी छे. जेथी ......... (?) ९९ हुं सगुण छं अने प्रियतम छे निर्गुण, निर्लक्षण, नि:संग. एक ज शरीरमां वसनारा अमारा बेनुं अंगथी अंग न मळ्युं ! १०० जेनुं चित्त जगतमां पांच रूपोमां, छ रसोमां अने सर्व रागोमां रंगायु नथी -- हे जोगी ! तेने मित्र बनाव. १०१ जेना शरीरमां तप थोडो संग करीने स्थिर थयुं छे तेवा नरोने पण मरणनो ताप असह्य होय छे. १०२

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