Book Title: Doha Ppahudam
Author(s): H C Bhayani, Ramnik Shah, Pritam Singhvi
Publisher: Parshva International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 60
________________ ५६ दोहा-पाहुड तेनी दृढ मर्यादा आंकी लेवी जोईए , जेवू भणाववामां आवे तेवू ज कर्बु जोईए. अने वळी आमतेम गमनागमन नहीं करवू जोईए. तेनां कर्मो आपोआप नाश पामशे. ८३ तत्त्वोनुं व्याख्यान करनार डाह्याए (पोताना) आत्मामां चित्त दीधुं नहीं. जाणे दाणा वगरनां घणां फोतरां संघर्या ! ८४ पंडितोना पंडित ! दाणा छोडीने तें फोतरां ज खांड्यां ! ग्रंथोना अर्थमां तुं संतोष पाम्यो. तुं मूढ छे, तुं परमार्थ जाणतो नथी. ८५ ___अक्षरोमां (ग्रंथज्ञानमां) जे गर्व करे छे ते कारण (परमार्थ) जाणता नथी. जेम हाथमां वांस धारण करेल चंडाळ केवळ (समज्या विना) हाथ धुणावे छे. ८६ ___८८ हे मूर्ख ! बहु भण्याथी शं? ज्ञानरूपी अग्नि पेटावतां शीख, के जे सळगतां पुण्य अने पाप बन्नेने क्षणमां ज बाळी दे छे. ८७. सिद्धत्व माटे सहु कोई वलखां मारे छे, पण सिद्धत्व चित्तनी निर्मळताथी पामी शकाय छे. केवळज्ञान मळरहित (निर्मळ) छे. ज्यां ते अनादि ज्ञान रहे छे ते उरमां सर्व जगतनो संचार थाय छे, कंई एनाथी पर रहेतुं नथी. ८९ आत्मा आत्मामां स्थित थाय छे. कोई(कर्म-मळ)नो लेप एने लागतो नथी. त्यारे तेना जे सघळा महा दोषो छे तेनो उच्छेद थई जाय छे. ९० हे जोगी ! जोग लईने जो जंजाळमां पडीश नहीं तो देहकुटि नाश पामशे, तुं तेमनो तेम रहीश. __ ९१ ___ अरे मनरूपी करभ ! इन्द्रिय-विषयोना सुखमां आसक्ति न कर. जेमां निरंतर सुख नथी एवा ते विषयोने क्षणमां छोडी दे. ९२

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