Book Title: Doha Ppahudam
Author(s): H C Bhayani, Ramnik Shah, Pritam Singhvi
Publisher: Parshva International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दोहा-पाहुड
एक्कु सुवेयइ अण्णु ण वेयइ , तासु चरिउ णउ जाणहिं देव इ। जो अणुहवइ सो जि परियाणइ , पुच्छतहं समित्ति को आणइ ।।१६५।। एकं सु वेत्ति अन्यद् न वेत्ति तस्य चरितं नैव जानंति देवाः । यः अनुभवति सः एव परिजानाति पृच्छतां . . . . . . कः आनयति ।। जं लिहिउ ण पुच्छिउ कह व जाइ , कहियउ कासु वि णउ चित्ति ठाइ । अह गुरु-उवएसें चित्ति ठाइ , तं तेम धरंतिहिं कहिं मि ठाइ ॥१६६॥ . यद् लिखितं न पृष्टं कथितुं शक्यते कथितं कस्य अपि नैव चित्ते तिष्ठति । अथ गुरूपदेशेन चित्ते तिष्ठति तद् तथा धरद्भिः कुत्र अपि तिष्ठति ॥ कड्डइ सरिजलु जलहि-विपिल्लिउ , जाणु पवाणु पवणपडिपिल्लिउ । बोहु विबोहु तेम संघट्टइ , अवर हि उत्तउ ता णु पयट्टइ ॥१६७।। निःसारयति सरित्जलं जलैः विप्रेरितं जानीहि प्रमाण पवनप्रतिप्रेरितं । बोधः विबोधः तथा संघ . . . . अवरेः उक्तं . . . . . . ॥
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