Book Title: Doha Ppahudam
Author(s): H C Bhayani, Ramnik Shah, Pritam Singhvi
Publisher: Parshva International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

View full book text
Previous | Next

Page 44
________________ 30 दोहा-पाहुड अंबरि विविहु सद्दु जो सुम्मइ , तहिं पइसरहुं ण वुच्चइ दुम्मइ । मणु पंचहिं सिहु अत्थवण जाइ , मूढा परम-तत्तु फुडु तहिं जि ठाइ ।।१६८॥ अंबरे विविधः शब्दः यः श्रूयते । तत्र प्रविशत न कथ्यते दुर्मतिः । मनः पंचभिः सह अस्तमने याति मूढ परमतत्त्वं स्फुटं तत्र एव तिष्ठति ।। अखए णिरामए परम-पए , अज्ज वि लउ ण लहंति । भग्गी मणहं ण भंतडी , तिम दिवहडा गणंति ॥१६९॥ अक्षये निरामये परमपदे अद्य अपि लयं न लभंते । भग्ना मनसः न भ्रांतिः तथा दिवसान् गणयंति ॥ सहज-अवत्थहे करहुलउ , जोइय जंतउ वारे । अखए णिरामए पेसियउ , सई होसइ संहारि ॥१७०॥ सहज-अवस्थायां करभं योगिन् गच्छंतं वारय । अक्षये निरामये प्रेषितः स्वयं भविष्यति . . . ॥ अखए णिरामए परम-पए , मणु घल्लेप्पिणु मेल्लें । तुट्टेसइ मा भंति करे , आवागमणहो वेल्लि ॥१७१।। अक्षये निरामये परमपदे मनः क्षिप्त्वा मुंच । त्रुटिष्यति मा भ्रांतिं कुरु आगमनगमनयोः वल्ली ॥ एमइ अप्पा झाइयइ , अविचलु चित्तु धरेवि । सिद्धि-महापुरि जाइयइ , अट्ठ वि कम्म हणेवि ॥१७२॥ एवं एव आत्मा ध्यायते अविचलं चित्तं धृत्वा । सिद्धि-महापुरे गम्यते अष्ट अपि कर्माणि हत्वा ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90