Book Title: Doha Ppahudam
Author(s): H C Bhayani, Ramnik Shah, Pritam Singhvi
Publisher: Parshva International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 54
________________ दोहा - पाहुड मूळ गुणने ऊखेडी नाखीने उत्तर गुणने जे वळग्या रहे छे ते डाळी चूक्या वांदरानी जेम बहु नीचे पडीने नाश पाम्या समजवा. २१ आत्माने नित्य अने केवळज्ञानमय स्वभाववाळो जाण्यो तो पछी हे मूढ ! शरीर उपर अनुराग शाने करवो जोईए ? २२ ४० चोरासी लाख योनि मध्ये अहीं एवी कोई जग्या नथी के ज्यां जिनवचननो लाभ न पामनारो जीव भटक्यो न होय. २३ जेना मनमां ज्ञान पगट्युं नथी तेवो मुनि सकळ शास्त्र जाणतो होवा छतां, कर्मना कारणोने उत्पन्न करतो होवाथी सुख पामतो नथी. २४ हे अबोध जीव ! तुं तत्त्वने ऊंधुं समज्यो छे के कर्मनिर्मित भावनेतुं आत्माना भावो कहे छे. २५ " , हुं गोरो हुं हुं शामळो हुं हुं जुदा जुदा वर्णवाळो छं, हु पातळो छु, हुं जाडो छु - एवं हे जीव ! न मान. २६ न तुं पंडित छे के न मूर्ख न तुं समृद्ध छे के न दरिद्र. न तुं कोईनो गुरु छे के न शिष्य. ए बधी तो कर्मनी विचित्रता छे. २७ न तो तुं कारण छे के न कार्य, न तो स्वामी छे के न दास. हे जीव ! तुं शूरपण नथी के कायर पण नथी, उत्तम नथी के अधम पण नथी. २८ पुण्य के पाप, काळ के आकाश, धर्मास्तिकाय के अधर्मास्तिकाय चेतनभाव छोडी (आमानुं) एक पण हे जीव ! तुं नथी. न तो गोरो के न शामळो. - एवं तारुं रूप जाण. - - २९ न तुं एके रंगनो छे. न पातळो के न जाडो ३० हुं उत्तम ब्राह्मण नथी, न तो वैश्य छु. नथी क्षत्रिय के न शेष (शुद्र); पुरुष, नपुंसक के स्त्री नथी - एवं विशेष जाण. ३१

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