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दोहा - पाहुड
मूळ गुणने ऊखेडी नाखीने उत्तर गुणने जे वळग्या रहे छे ते डाळी चूक्या वांदरानी जेम बहु नीचे पडीने नाश पाम्या समजवा.
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आत्माने नित्य अने केवळज्ञानमय स्वभाववाळो जाण्यो तो पछी हे मूढ ! शरीर उपर अनुराग शाने करवो जोईए ?
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चोरासी लाख योनि मध्ये अहीं एवी कोई जग्या नथी के ज्यां जिनवचननो लाभ न पामनारो जीव भटक्यो न होय. २३
जेना मनमां ज्ञान पगट्युं नथी तेवो मुनि सकळ शास्त्र जाणतो होवा छतां, कर्मना कारणोने उत्पन्न करतो होवाथी सुख पामतो नथी.
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हे अबोध जीव ! तुं तत्त्वने ऊंधुं समज्यो छे के कर्मनिर्मित भावनेतुं आत्माना भावो कहे छे.
२५
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हुं गोरो हुं हुं शामळो हुं हुं जुदा जुदा वर्णवाळो छं, हु पातळो छु, हुं जाडो छु - एवं हे जीव ! न मान.
२६
न तुं पंडित छे के न मूर्ख न तुं समृद्ध छे के न दरिद्र. न तुं कोईनो गुरु छे के न शिष्य. ए बधी तो कर्मनी विचित्रता छे.
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न तो तुं कारण छे के न कार्य, न तो स्वामी छे के न दास. हे जीव ! तुं शूरपण नथी के कायर पण नथी, उत्तम नथी के अधम पण नथी.
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पुण्य के पाप, काळ के आकाश, धर्मास्तिकाय के अधर्मास्तिकाय चेतनभाव छोडी (आमानुं) एक पण हे जीव ! तुं नथी.
न तो गोरो के न शामळो. - एवं तारुं रूप जाण.
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न तुं एके रंगनो छे. न पातळो के न जाडो
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हुं उत्तम ब्राह्मण नथी, न तो वैश्य छु. नथी क्षत्रिय के न शेष (शुद्र); पुरुष, नपुंसक के स्त्री नथी - एवं विशेष जाण.
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