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दोहा-पाहुड हुं तरुण छु, वृद्ध छु के बाळक छु , शूर छु , दैवी पंडित छु , क्षपणक (दिगंबर), वंदक (बौद्ध) के श्वेताम्बर मुनि छु – एवं बधुं विचार मा. ३२
देहना जरा-मरण जोईने हे जीव ! तुं गभरा नहीं. जे अजरामर परम ब्रह्म छे तेवा आत्माने ओळख.
देहने जरा-मरण संभवे छे. देहना ज विविध वर्ण होय छे. देहने ज रोग थाय छे. तुं जाणी ले के मात्र देहने ज जाति होय छे.
३४ जरा, मरण, रोग, जाति के वर्ण आत्माने छे नहीं के थतां नथी. ए नक्की जाण के जीवने (आमांनी) एके संज्ञा होती नथी.
३५ ' जो कर्मना भावने आत्मा कहेतो होय तो तुं परमपद पामीश नहीं अने 'फरी संसारमा भमीश.
ज्ञानमय आत्मभाव सिवायनो बीजो भाव तो परभाव छे. ते छोडीने हे जीव ! तुं शुद्ध स्व(आत्म) भावनुं ध्यान कर.
वर्णविहीन अने ज्ञानमय स्वात्मनी भावना जे करे छे ते ज शांत, निरंजन अने शिव छे. तेमां ज अनुराग करवो जोईए.
३८ त्रिभुवनमां जिनदेव देखाय छे, जिनवरमां आ त्रिभुवन (समायेल) छे. जिनवरमां सकळ जगतनुं दर्शन थाय छे. माटे ए बेमां कंई भेद न करवो जोईए.
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जिनने जाणो, जिनने जाणो – एम (कोई) कहे छे. पण हे सखि ! जो ज्ञानमय आत्मा देहथी भिन्न छे ए जाणी लीधुं तो बीजुं शु जाणवायूँ बाकी रह्यु ?
४० . जिनने वंदन करो, जिनने वंदन करो – एम (कोई) कहे छे. पण हे सखि ! परमार्थ जाणी लीधा पछी पोताना देहमा वसे छे तेने अहीं कोण वंदन करे?