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________________ .. दोहा-पाहुड - १२ धन अने परिवारनी चिंतामां तु मुक्ति मेळवी शकतो नथी, तो पण ते ने ते ज विचार्या करे छे अने तेमां ज महासुख माने छे. हे जीव ! एने गृहवास न समज. ए तो पापर्नु निवासस्थान छे, यमे गोठवेलो अतूट पाश छे. एमां संदेह नथी. हे मूढ ! सघळु बनावटी (क्षणिक) छे. तुं खाली फोतरां खांड मा. तरत घर-परिवार छोडी निर्मळ शिवपदमां आसक्ति कर. जेनो निवास (निर्विकल्प समाधिरूप) आकाशमा छे तेनो मोह विलीन थई जाय छे, मन मरी जाय छे, श्वास-निश्वास तूटी जाय छे ने केवळज्ञान प्रगट थाय छे. (साधु)-वेश तो ग्रहण करे छे पण भोगनो भाव त्यजतो नथी, जेम सापे कांचळी मूकी दीधी पण जे विष छे ते मूकतो नथी. १५ जे मुनि विषयसुख छोडीने फरी तेनी इच्छा करे छे ते केशलुंचननी पीडा अने शरीर सूकवानुं दुःख (वधारामां) सहन करीने फरी संसारमा भटके छे. १४ १७ विषयोनां सुखो बे दिवसनां छे, फरी पाछी दुःखोनी परंपरा. ए भूलीने हे • जीव ! तुं पोताना खभे (ज) कुहाडी न फेरव शरीरनुं विलेपन कर, मर्दन कर, संभाळ ले अने अति मीठा आहार दे दुर्जन पर करेला उपकारनी जेम आ बधुं निरर्थक छे. १८ अस्थिर, मलीन अने गुणहीन काया द्वारा स्थिर, निर्मळ अने गुणोना सार रूप क्रिया जो थई शकती होय तो केम न करवी ? विष सारूं, विषधर नाग सारो, अग्नि सारो, (अरे) वनवास, सेवन पण सारं. (परंतु) जिनधर्मथी विमुख मिथ्यात्वीनो सहवास नहीं सारो. २०
SR No.002359
Book TitleDoha Ppahudam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Ramnik Shah, Pritam Singhvi
PublisherParshva International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
Publication Year1999
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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