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दोहा-पाहुड
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दोहा-पाहुड
(Gujarāti Translation) आत्मा अने परनो भेद जे दर्शावे छे ते गुरु सूर्य छे, गुरु चंद्र छे, गुरु दीपक छे, गुरु देव छे.
पोताने आधीन जे सुख छे तेनाथी ज संतोष कर. हे मूर्ख ! पारकाना सुखनी इच्छा करवाथी हृदयनी तरस छीपती नथी.
जे सुख विषय-विमुखने आत्मध्यानमां मळे छे ते सुख करोड देवीओ साथे क्रीडा करता इन्द्रने पण मळतुं नथी.
विषयसुख भोगवता छतां जे हृदयमां (तेनो भाव) धारण करता नथी ते तरत शाश्वत सुख मेळवे छे - एम जिनवरो कहे छे.
विषयसुख न भोगवता छतां जे हृदयमां (तेनो) भाव धारण करे छे ते नर बापडां शालिसिक्थनी जेम नरकमां पडे छे.
आपत्तिमां आडोअवळो विलाप करे छे, एनाथी तो दुनिया ज राजी थाय छे. मन शुद्ध अने स्थिर थाय त्यारे परमलोकनी प्राप्ति थाय छे. ६
जंजाळमां पडेल सकळ जगत अज्ञानवश कर्मो करे जाय छे, पण मुक्तिना कारणरूप (शुद्ध) आत्मानुं एक क्षण पण चिंतन करतुं नथी. ७
ज्यां सुधी ज्ञान मेळवतो नथी त्यां सुधी पुत्रपत्नी आदिमां मोह पामेल आत्मा दुःखो सहन करतो लाख योनिमां भटके छे.
पोताना घर, परिवार, तन वगेरे ईष्ट न समज. ए बधां तो कर्मने आधीन अने बनावटी (क्षणिक) छे– एम आगमोमां योगीओए का छे. ९
मोहने वश थई तें जे दुःख छे तेने सुख अने जे सुख छे तेने दुःख गण्डे तेथी ज तुं मुक्ति पाम्यो नहीं.
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