Book Title: Doha Ppahudam
Author(s): H C Bhayani, Ramnik Shah, Pritam Singhvi
Publisher: Parshva International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 48
________________ दोहा-पाहुड ३४ संतु ण दीसइ तत्तु ण वि , संसारेहिं भमंतु । खंधावारिउ जिउ भमइ , अवराडइहिं रहंतु ॥१९१।। सन् न दृश्यते तत्त्वं . . . . संसारे भ्रमन् । स्कन्धावारिकः जीवः भ्रमति , अपराटव्यां वसन् ॥ उव्वस वसिया जो करइ , वसिया करइ जु सुण्णु । वलिकिज्जउ तसु जोइयहि , जासु ण पाउ ण पुण्णु ॥१९२॥ उद्वसान् उषितान् यः करोति , उषितान् करोति यः शून्यान् । बलिक्रिये तस्य योगिनः यस्य न पापं न पुण्यं ॥ कम्मु पुराइउ जो खवइ , अहिणव पेसु ण देइ । अणुदिणु झायइ देउ जिणु , सो परमप्पउ होइ ॥१९३॥ कर्म पुराआगतं यः क्षपयति अभिनवं प्रवेशं न ददाति । अनुदिनं ध्यायति देवं जिनं सः परमात्मा भवति ।। विसया सेवइ जो वि परु , बहुला पाउ करेइ । गच्छइ णरयहं पाहुणउ , कम्मु सहाउ लएइ ॥१९४॥ विषयान् सेवते यः अपि परं बहून् पापान् करोति । गच्छति नरकस्य प्राधूर्णकः कर्म. . . . ॥ कुहिएण पूरिएण य छिद्देण य खारमुत्तगंधेण । संताविञ्जइ लोओ जह सुणहो चम्मखंडेण ॥१९५।। कुथितेन पूरितेन च छिद्रेण क्षारमूत्रगंधेन । संताप्यते लोकः यथा श्वा चर्मखंडेन ।। देखताहं वि मूढ वढ , रमियई सुक्खु ण होइ। अम्मिए मुत्तहं छिडु लहु , तो वि ण विणडइ कोइ ॥१९६।। पश्यतां अपि मूढ मूर्ख . . . . सुखं न भवति । मातर् मूत्रस्य छिद्रं लघु ततः अपि . . . . कः अपि ॥

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