Book Title: Doha Ppahudam
Author(s): H C Bhayani, Ramnik Shah, Pritam Singhvi
Publisher: Parshva International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दोहा - पाहुड
तउ करि दहविहु धम्मु करि, जिणभासिउ सुपसिद्ध । कम्महं णिज्जर एह जिय, फुडु अक्खिर मई तज्झ ॥२०८|| तपः कुरु दशविधं धर्मं कुरु जिनभाषितं सुप्रसिद्धं ।
कर्मणां निर्जरा एषा जीव स्फुटं कथितं मया त्वं ॥
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दहविहु जिणवरभासियउ, धम्मु अहिंसासारु ।
अहो जिय भावहि एक्कमणु, जिम तोडहि संसारु ॥ २०९ ॥ दशविधः जिनवर - भाषितः धर्मः अहिंसासारः । अहो जीव भावय एकमनाः यथा त्रोटयसि संसारं ॥
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भवे भवे दंसणु मल - रहिउ भवे भवे करउं समाहि । भवे भवे रिसि गुरु होइ महु, णिहय- मणुब्भव - वाहि ॥ २१०॥ भवे भवे दर्शनं मलरहितं भवे भवे करोमि समाधि ।
भवे भवे ऋषिः गुरुः भवतु मम निहतमनः उद्भवव्याधिः॥
अणुपेहा बारह विजय भावेवि एक्कमणेण । रामसीहु मुणि इम भणइ, सिवपुरि पावहि जेण ॥२११॥ अनुप्रेक्षाः द्वादश अपि जीव भावयित्वा एक- मनसा । रामसिंहः मुनिः एवं भणति शिवपुरीं प्राप्नोषि येन ॥
इय पाहुड - दोहा समत्ता ।
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