Book Title: Doha Ppahudam
Author(s): H C Bhayani, Ramnik Shah, Pritam Singhvi
Publisher: Parshva International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 51
________________ ३७ दोहा - पाहुड तउ करि दहविहु धम्मु करि, जिणभासिउ सुपसिद्ध । कम्महं णिज्जर एह जिय, फुडु अक्खिर मई तज्झ ॥२०८|| तपः कुरु दशविधं धर्मं कुरु जिनभाषितं सुप्रसिद्धं । कर्मणां निर्जरा एषा जीव स्फुटं कथितं मया त्वं ॥ . दहविहु जिणवरभासियउ, धम्मु अहिंसासारु । अहो जिय भावहि एक्कमणु, जिम तोडहि संसारु ॥ २०९ ॥ दशविधः जिनवर - भाषितः धर्मः अहिंसासारः । अहो जीव भावय एकमनाः यथा त्रोटयसि संसारं ॥ , भवे भवे दंसणु मल - रहिउ भवे भवे करउं समाहि । भवे भवे रिसि गुरु होइ महु, णिहय- मणुब्भव - वाहि ॥ २१०॥ भवे भवे दर्शनं मलरहितं भवे भवे करोमि समाधि । भवे भवे ऋषिः गुरुः भवतु मम निहतमनः उद्भवव्याधिः॥ अणुपेहा बारह विजय भावेवि एक्कमणेण । रामसीहु मुणि इम भणइ, सिवपुरि पावहि जेण ॥२११॥ अनुप्रेक्षाः द्वादश अपि जीव भावयित्वा एक- मनसा । रामसिंहः मुनिः एवं भणति शिवपुरीं प्राप्नोषि येन ॥ इय पाहुड - दोहा समत्ता । ,

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