Book Title: Doha Ppahudam
Author(s): H C Bhayani, Ramnik Shah, Pritam Singhvi
Publisher: Parshva International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 41
________________ २७ दोहा-पाहुड मुंडु मुंडाइवि सिक्ख धरि , धम्महं वद्धी आस । णवरि कुडुंबउ मेलियउ , छुडु मिल्लिया परास ॥१५३।। मुंडं मुंडावित्वा शिक्षां धृता धर्मे बद्धा आशा । प्रत्युत कुटुंबं मेलितं यदि मुक्ता पराशा ।। णग्गत्तणि जे गव्विया , विगुत्ता ण गणंति । गंथहं बाहिरभिंतरिहिं , एक्कु इ ते ण मुयंति ॥१५४॥ नग्नत्वेन ये गर्विताः . . . . ण गणयंति । ग्रंथानां बहिः अब्भ्यंतरे एकं अपि तो न मुंचंति ॥ अम्मिय इहु मणु-हत्थिया , विझह जंतउ वारि । तं भंजेसइ सीलवणु , पुणु पडिसइ संसारि ॥१५५।। मातर एतं मनःहस्तिनं विध्ये गच्छंतं वारय । तद् भंजिष्यति शीलवनं पुनः पतिष्यति संसारे ॥ जे पढिया जे पंडिया , जाहिं मि माणु मरट्ट । ते महिलाण हि पिडि पडिय , भमियई जेम घरट्ट ॥१५६।। ये पठिताः ये पंडिताः येषां अपि मानं गर्वः । ते महिलानां . . . . , पतिताः भ्राम्यते यथा अरघट्टः ।। विद्धा वम्मा मुट्ठिइण , फुसिवि लिहिहि तुहुँ ताम । जह संखहं जीहा लुसिवि , सड्ड छलइ ण जाम ॥१५७।। . . . . . . . . . मुष्टिना मृष्ट्वा लिखसि त्वं तावद् । . . . . . . . . . . . . . . . छलति न यावद् ॥ पत्तिय तोडहि तडतडहं , णाई पइट्ठउ उट्ट । । एव ण जाणहि मोहियउ , को तोडइ को तुट्ट ॥१५८।। पत्राणि भनक्सि त्रटनटत् यथा प्रविष्ट उष्ट्रः । एवं न जानासि मोहितः कः भनक्ति कः भक्तः ॥

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