Book Title: Doha Ppahudam
Author(s): H C Bhayani, Ramnik Shah, Pritam Singhvi
Publisher: Parshva International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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दोहा-पाहुड
दया-विहीणउ धम्मडा , णाणिय कह वि ण जोए । बहुएं सलिल-विरोलियइं , करु चोप्पडउ न होइ ॥१४७।। दयाविहीनं धर्मं ज्ञानी कथं अपि न पश्यति । बहुना सलिलविलोडनेन करौ स्निग्धौ न भवतः ॥ भल्लाण वि णासंति गुण , जहिं सहुं संगु खलेहिं । वइसाणरु लोहहो मिलिउ , पिट्टिज्जइ सुघणेहिं ॥१४८॥ सज्जनानां अपि नश्यति गुणाः यदि सह संगः खलैः । वैश्वानरः लोहेन मिलितः पिट्यते सु-घणैः ॥ हुयवहे णाइ ण सक्कियउ , धवलत्तणु संखस्स । फिट्टीसइ मा भंति करे , छुडु मिलिया खयरस्स ॥१४९।। हुतवहे . . . . ण शक्तं धवलत्वं शंखस्य । नाशिष्यति मा भ्रांति कुरु यदि मिलितः खदिरं ।। संखे समुद्दहिं मुक्कियए , एही होइ अवत्थ । जो दुव्वाहहिं चुंबिया , लाएविणु गले हत्थ ॥१५०॥ शंखस्य समुद्रेन मुक्तेन ईदृशा भवति अवस्था । यः . . . . चुंबित: लगित्वा गले हस्तं ।। छंडेविणु गुणरयणणिहि , अग्घथडिहिं घिप्पंति । तहिं संखाहं विहाणु पर , फुक्किज्जंति ण भंति ॥१५१॥ त्यक्त्वा गुणरत्ननिधि . . . . क्षिप्यते । तेषां शंखानां भ्रष्टत्वं परं . . . . भ्रमंति ।। महुयर सुरतरुमंजरिहिं , परिमलु रसिवि हयास । हियडा फुट्टिवि कि ण मुयउ , ढंढोलंतु पलास ॥१५२॥ मधुकर सुरतरुमंजर्याः परिमलं . . . . . हताश । हृदयं स्फुटित्वा किं न मृतः . . . . पलाशं ।
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