Book Title: Doha Ppahudam
Author(s): H C Bhayani, Ramnik Shah, Pritam Singhvi
Publisher: Parshva International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan
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१३
दोहा - पाहुड
सई मिलिया सइं विहडिया, जोइय कम्म णिभंति । तरल-सहावहिं पंथियहिं, अण्णु कि गाम वसंति ॥ ७३ ॥ स्वयं मिलितानि स्वयं विघटितानि योगिन् कर्माणि न भ्रांतिः । तरलस्वभावैः पथिकैः अन्यद् किं ग्रामाणि वसंति ॥
अण्णु जि जीउ म चिंति तुहुं, जइ वीहउ दुक्खस्स । तिल - तुस - मित्तु वि सल्लडा, वेयण करइ अवस्स ॥७४॥ अन्यद् एव जीव मा चिंतय त्वं यदि भीतः दुःखात् । तिल - तुषमात्रं अपि शल्यं वेदना करोति अवश्यं ॥
अप्पा वि विभावियइं, णासइ पाउ खणेण । सूरु विणासइ तिमिरहरु, एकलउ णिमिसेण ॥७५॥ आत्मा देवे विभाविते नश्यति पापं क्षणेन । सूर्य: विनाशयति तिमिरभरं एकाकी निमिषेन ॥
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जोइय हियडए जासु परु एक्कु जे णिवसइ देवु । जम्मण - मरण- विवज्जियउ, सो पावइ परलोउ || ७६ || योगिन् हृदये यस्य परं एकः एव निवसति देवः । जन्म-मरण- विवर्जितः सः प्राप्तोति पर लोकं ॥
कम्मु पुराइउ जो खवइ, अहिणवु पेसु ण देइ । परम - णिरंजणु जो णवइ, सो परमप्पउ होइ ||७७|| कर्म पुरतः आगतं यः क्षपयति अभिनवं प्रवेशं न दत्ते । परमनिरंजनं यः नमति सः परमात्मा भवति ॥
पावु वि अप्पहिं परिणवइ, कम्मई ताम करेइ परम- णिरंजणु जाम ण वि णिम्मलु होवि मुणेइ ॥ ७८ ॥ पापं अपि आत्मनि परणयति कर्माणि तावद् करोति । परम- निरंजनं यावद् न अपि निर्मलः भूत्वा जानाति ॥
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