Book Title: Doha Ppahudam
Author(s): H C Bhayani, Ramnik Shah, Pritam Singhvi
Publisher: Parshva International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 33
________________ दोहा-पाहुड मूलु छंडि जो डाले चडि , कहं तहो जोअब्भासें । चीरु ण वुणणहं जाइ वढु , विणु ओट्टियए कपासे ॥१०९।। मूलं त्यक्त्वा यः शाखां आरोहति किं तस्य योगाभ्यासेन । चीवरं न ओतुं याति मूर्ख विना अपवर्तिते कर्पासे ॥ सव्व-वियप्पहुं तुट्टहुं , चेयण-भाव-गयाहुं । कीलइ अप्पु परेण सहुँ , णिम्मल-झाण-ठियाहुं ॥११०॥ सर्व-विकल्पां त्रुट्यंति चेतनभावगतानां । क्रीडति आत्मा परेण सह निर्मल-ध्यान-स्थितानां ॥ अज्जु जिणिज्जइ करहुलउ , लइ पई देविणु लक्खु । जित्थु चडेविणु परम-मुणि , सव्व गया पय-मोक्खु ॥१११॥ अद्य जियात् करभः गृहाण गृहाण तुभ्यं दत्त्वा लक्षं । यत्र आरुह्य परममुनिः सर्वे गताः पदं मोक्षस्य । करहा चरि जिणगुणथलिहिं , तव-विल्लडिय पगाम । विसमी भवसंसारगइ , उल्लूरियहि ण जाम ॥११२॥ करभ चर जिनगुणस्थल्यां तपःवेल्ली प्रकामं । विषमा भवसंसारगतिः उल्लूरि न यावत् ॥ . तव दावणु वय भियमडा , सम-दम कियउ पलाणु । संजमघरहं उमाहियउ , गउ करहा णिव्वाणु ॥११३॥ तपः दाम व्रतं xxx शमदमे कृतः पर्याणं । संयम-गृहं उन्माथितः गतः करभः निर्वाणं ॥ एक्क ण जाणहि वट्टडिय , अवरु ण पुच्छहि कोइ । अड्डवियड्डहिं डुंगरहिं , णर भंजंता जोइ ॥११४॥ एकं न जानासि वर्मानं अपरं न पुच्छसि कं अपि । विषमातिविषमेषु शैलेषु नराः भंजंतः पश्य ।।

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