Book Title: Doha Ppahudam
Author(s): H C Bhayani, Ramnik Shah, Pritam Singhvi
Publisher: Parshva International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 22
________________ दोहा-पाहुड ढिल्लउ होहि म इंदियहुं , पंचहुं विण्णि णिवारि । एक्क णिवारहि जीहडिय , अण्ण पराइय णारि ॥४३॥ शिथिलं भव मा इंद्रियेषु पंचानां द्वे निवारय । एकं निवारय जीह्वां अन्यद् परकीयां नारी ।। पंच वलद्द ण रक्खिया , णंदणवणु ण गओ सि । अप्पु ण जाणिउ ण वि परु वि , एवंइ पव्वइओ सि ॥४४॥ पंच बलिवर्दाः न रक्षिताः नंदनवनं न गतः असि । आत्मा न ज्ञातः न अपि परः अपि एवं एव प्रवजितः असि ॥ पंचहिं वाहिरु णेहडउ , हले सहि लग्गु पियस्स । तासु ण दीसइ आगवंणु , जो खलु मिलिउ परस्स ॥४५॥ पंचानां बाह्यः स्नेहः हला सखि लग्नः प्रियस्य । निज-देहे वसतः यदि ज्ञातः परमार्थः ॥ मणु जाणइ उवएसडउ , जइ सोवेइ अचिंतु । अचित्तहो चित्तु मेलवइ , सो पुणु होइ णिचिंतु ॥४६।। मनः जानाति उपदेशं येत्र स्वपिति अचिंतः । अचित्तस्य चित्तं यः मेलयति सः पुनः भवति निश्चिन्तः ।। वट्टडिया अणुलग्गयहुं , अग्गए जोयंताहुं । कंटउ भग्गइ पाउ जइ , भज्जउ दोसु ण ताहं ॥४७॥ वर्त्मनि अनुलग्नानां अग्रे पश्यतां । कंटकः भनक्ति पादं यदि भनक्तु दोषः न तेषां ॥ मिल्लहो मिल्लहो मोक्कलउ , जहि भावइ तहिं जाउ । . सिद्धि-महापुरि पइसरउ , मा करे हरिसु विसाउ ॥४८।। मुंचत मुंचत मुक्तं यत्र भावयति तत्र यातु । सिद्धि-महापुरे प्रविशतु मा कुरु हर्षं विषादं ॥

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