Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Jinmandangiri, Chaturvijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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कुमारहेमेव गुणैर्गरिष्ठं धर्म त्रिधा शुद्धमिति श्रिता ये । श्रीपालवत्ते परमर्द्धिभाजः क्रमाद्भजन्ते शिवसंपदोऽपि ॥१०७॥ इति धर्माधर्मविचारग्रन्थे श्रीसोमसुन्दरसूरिशिष्य श्रीजिनमण्डनगणिनिर्मिते गुरुत्वलक्षणषष्ठगुणखरूपम् ।
अथ सप्तमगुणखरूपमाह
दाणोवयाररूवो सबेसिं संमओ हवइ धम्मो । कुमयग्गिणा अडज्जो कणगं व विसेससोहकरो ॥ १ ॥
इह व्यवहारनिश्चयभेदाभ्यां द्विधा धर्मः । सोऽपि शुद्धाशुद्धतया द्विप्रकारः । यतः -
गीअत्थाण गुरूणं अदंसणाओ कहं भवे सवणं । सवणं विणा कहं पुण धम्माधम्मं विलखिज्जा ॥ १ ॥ इह मिच्छपयट्टाणं धम्मो संभवइ कहमधम्मो अ । धम्मो वि दुहा इह दवभारभेएहिं सुपसिद्धो ॥ २ ॥ सो होइ दवधम्मो अपहाणो नेव निधुई देह । सुद्धो धम्मो बीओ गहिओ पडिसोअगामीहिं ॥ ३ ॥ जेण करणं जीवो निवडइ संसारसायरे घोरे । तं चैव कुणइ कज्जं इह सो अणुसोअगामीओ ॥ ४ ॥ जेणाणुट्ठाणेणं खनिअभवं जंति निधुई जीवा । तकरणरुई जो किर नेओ पडिसोअगामीओ ॥ ५ ॥ पढमगुणट्ठाणे जे जीवा चिरंति तेसि मो पढमो । होइ इह दवधम्मो अविसुद्धो बीअनासेणं ॥ ६ ॥ अविरयगुणठाणाइसु जे अ ठिआ तेसु भावओ धम्मो । तेण

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