Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Jinmandangiri, Chaturvijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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+MAHARANAGAR
जुग्गजियाणं विहिणा जुग्गेहि गुरूहि देसिओ सम्मं । जुग्गो धम्मो अ तहा सयलेट्टपसाहगो होइ॥१॥ रत्तो दुट्ठो मूढो पुचि बुग्गाहिओ य चउरो वि । एए धम्माणरिहा अरिहो पुण होइ मज्झत्यो ॥५७॥ तेर्सि चेव हिअट्टा अन्नह अइगाढरोगविहुराणं । ओसहदाणमकाले जहा तहाऽणि?फलहेऊ ॥ ५८॥ इइ सिरिमईइ भणि निसम्म सोमा पभासए एवं। पियसहि ! सवे जीवा हवंति किं एरिसा लोए ?॥ ५९॥ अंगीकयवयपालणसुरगिरिणो के वि हुँति सप्पुरिसा। जह दत्तनामसिट्टी आसी गुरुवयणदढचित्तो ॥६०॥ जहा| विस्सपुरीनयरीए दत्तो नामेण आसि ववहारी। नियरिद्धिवित्थरेणं विक्खाओ नयरलोअस्स ॥ ६१ ॥ सो संपत्तो कइया कंबुद्दीवंमि जलहिमछमि । उवअजिऊण नाणाधणकोडीओ सकम्मेणं ॥ ६२॥ आगच्छंतो पच्छा बुडो जलहिमि पोअभंगेण । तरिऊणं फल एणं जलनाहं आगओ तीरं ॥ ६३ ॥ गुणसागरमुणिनाहं कुणमाणं धम्म|देसणं तत्थ । पणमित्ता गिहिधम्मं दत्तो गिण्हइ तओ सम्मं ॥ १४॥ तओं पत्तो नियगेहं कमेण कम्मेण निद्धणो| जाओ। सो चिंतह निबाहो अओ परं मे कहं होही॥६५॥ पत्तो जिणिंदधम्मो दुलहो चिंतामणि व सुहहेऊ ।
पालेऊणं तीरइ सम्मं नो रोरपुरिसेहिं ॥६६॥ अहवा गिहमज्झत्थं पत्तं वाएमि तायसंदिहें। दारिदवेगहरणं ४|इइ चिंतिअ वायए एवं ॥ ६७॥ त्रिभिर्विशेषकम् ॥ जलनिहिमझे गोअमदीवे दूरट्टियंमि विविहाओ। रयण|तिणचारिणीओ गावीओ संति बहुआओ॥६८॥ इत्तो गोमयखत्तं गिण्हित्ता गम्मए तर्हि कह वि । सुरहिनि-11

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