Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Jinmandangiri, Chaturvijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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नवमः परिच्छेदः
धर्मपरीक्षा
बेसहाये ठाविजावत्य जुत्तीए ॥ ६९॥ तकृषणफरिसजोगा गावीबो निसि सुहेण निवसति । कुवंति गोमयाई। वह रसणसमाणवत्राइं॥७॥ जलिएस तेसु विहिणा हति रवणाई गुरुअमुल्लाइं। इति पचक्खरभावं जाणित्ता चिंतए सिट्ठी ॥७१॥ हियकारिणा परेण वि न बुद्धिमंतेण भासिवं चलइ । किं पुण पिउणा निउणेण मन्झ एग
तरचेण ॥ ७२ ॥ नयरजणाणं पुरओ पभणइ सिट्ठी तओ सया एवं । भो भो लोआ! वट्टइ बुद्धी विहवो न मह ६ पासे ॥ ७३ ॥ लोओ वि भणइ एवं सुणिऊणं तस्स वयणमणवरयं । धणहीणो पुण एसो पत्तो गिहलत्तणं सिट्ठी
॥ ७४ ॥ को वि न अप्पइ लञ्छि न प्पडिवयणं करेइ तेण समं । नो चिहइ पुण सिट्ठी जप्पंतो तारिसं वयणं ॥७५ ॥ अह सुचा नरनाहो तस्स सरूवं दयाभरिअचित्तो। एगं घणस्स लक्खं अप्पावइ झत्ति सिट्ठिस्स ॥७६॥ तेण धणेणं विहिआ तेण तओ वाहणाइसामग्गी। गोयमदीवं गंतुं पिउवयणा रयणलाभत्थं ॥ ७७॥ अविगणि लोअलजं अवहीलिअदुजणाण वयणाई। दत्तेण तओ गोमयखत्तेणं पूरि पोरं ॥ ७८॥ तओं जिणवरिंदपूआमहिमं काऊण परमभत्तीए । सो वाहणेण पचो गोयमदीवंमि खेमेणं ॥ ७९ ॥ तत्थ पिकहिअविहिणा रयणगवीणं करितु छगणाई । सो पचो नियगेहे कमेण जलहिं समुत्तरित्रं ॥८॥ अह सयलनयरलोओ पमणइ अचुन्नहासकयनिउणो । दत्तेण अहो ! एकं आणीयं केरिसं पन्नं ॥८१॥आणाविऊण रन्ना भणिओ दत्तो सरोसहियएणं। निब्भग्ग !जल हिमझा छमणगणो आणिओ कीस ॥८२॥ विनवह तो दत्तो नरनाहं पणमिऊण विणएणं । सामी
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॥५५॥

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