Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Jinmandangiri, Chaturvijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 142
________________ धर्मपरीक्षा नवमः परिच्छेदः ॥ ५८ ॥ HERA सिट्टी संपत्तो खमेणं नियगिहं सह जणेणं । दासो मग्गइ कन्नं एविहु एवं भणइ तस्स ॥ १४६ ॥ उत्तमकुलसंजायं कन्नारयणं गुणेहि संजुत्तं । तुम्भं अप्पेमि कहं कुलाइहीणस्स दासस्स ॥ १४७ ॥ दासेणं विनतो तओं राया सिहिणं भणइ एवं । दाऊण कहं कन्नं अहुणा अप्पेसि णो भह ! ॥१४८ ॥ पभणइ सिट्टी एवं रायाणं को वि ४ सक्खिओ इत्थ । दासो जंपइ विहगा तत्थ ठिआ जावगा संति ॥ १४९ ॥ रायादेसेण तओ दासेणं आणिया य? ते विहगा। सियचंचुरत्तचरणा उच्चगला जावगा नाम ॥ १५० ॥ते छगणजायजीवे भक्खंता पुच्छिा करइ सन्नं । कुवंतो चंचूहि किमिगणसंचालणाइरया ॥ १५१ ॥ कूडवयणेण एवं जीवा पावंति पक्खिणो जोणिं । किमिभोईणं | पावं तम्हा सच्चं भणिज्जासु ॥ १५२ ॥ तो अप्पावइ कन्नं राया दासस्स पक्खिवयणेणं । रन्नो आणाभंगा सेट्ठी एसो दुहं पसो॥१५३॥ तंमि समयम्मि जंपइ सोमा जणयं परेण विणएणं । जंकूडवयणनियमो धम्मो सम्मं मए गहिओ ॥ १५४ ॥ मुंचामि ताय ! अहवा पालेमि वयं इमं जिणाभिहि। रायगुरू पुण जंपइ वच्छे ! पालेमि वयमेवं ॥ १५५ ॥ यतः| अलीकं ये न भाषन्ते सत्यवतमहाधनाः। धात्री पवित्रीक्रियते तेषां चरणरेणुभिः॥१॥ पुरजो वचंताणं ताणं अह नयणगोअरं पत्तो। एगो पुरिसो बहुआ हम्मंतो नरवइजणेहिं ॥ १५६ ॥ तो तेहिं ते भणिआ हम्मइ एसो कहं निराधारो । जंपंति रायपुरिसा एसोतेणो दुरायारो ॥ १५७ ॥ रायादेसेण तओ मारि

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