Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Jinmandangiri, Chaturvijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 140
________________ धर्मपरीक्षा ॥ ५७ ॥ देहो मणंमि झायंतो । थावरमारणमइओ मुणिचंदो गोकुलं पत्तो ॥ १२१ ॥ मुणिचंदेणं दासो रयणीए मारिओ बहिं सुत्तो । नियठाणकट्ठठावणकूडपवचेण सयमेव ॥ १२२ ॥ साहइ चोरागमणं मुणिचंदो कलकलं तओ काउं । पुरओ वयलोआणं रोअंतो घुग्घरसरेणं ॥ १२३ ॥ गोसे गिहंमि पत्तं मुणिचंदं संपया भणइ माया । पुत य! थावरदासो नहि दीसह केण कज्जेण ॥ १२४ ॥ सो भणइ माय ! हणिओ भिच्चो चोरेहिँ गोकुले सुत्तो । तेणाहं एगागी संपत्तो मंदिरं सिग्धं ॥ १२५ ॥ तो पत्थरघाएणं मुणिचंदो मारिओ य मायाए । मुणिचंदस्स य दइया तं | पहणइ देमई रोसा ॥ १२६ ॥ तं वृत्तंतं सुच्चा राया ठावेइ देमई पावं । गुत्तीह पुणो पुच्छर बंधुमई आणिउं पासे ॥ १२७ ॥ किं देमई न हणिआ तुमए जणणीए मारया एसा । सा भणइ निवं सामिय ! हिंसानियमो Sत्थि मह सम्मं ॥ १२८ ॥ जो वहइ जीवमेगं पावो निरणुकसो निरवराहं । सो नरयतिरिअदुक्खं पावर कम्मेहिं अइतत्तो ॥ १२९ ॥ यतः - जो देइ कणयकोडिं धन्नाणं मूढकोडिकोडीओ । इकं वहेइ जीवं न छुट्टए तेण पावेण ॥ १ ॥ धम्मं जणो वि मग्गइ मग्गंतो वि अ नयाणइ विसुद्धं । धम्मो जिणेहिं भणिओ जत्थ दया सङ्घजीवाणं ॥ १३० ॥ तिन्नि सया तेसट्टा पासंडी अवि परोपरविरुद्धा । न य दूसंति अहिंसं तं गिण्हह जत्थ सा सयला ॥ १३१ ॥ तथान हिंसासदशं पापं त्रैलोक्ये सचराचरे । हिंसको नरकं गच्छेत्स्वर्ग गच्छेदहिंसकः ॥ १ ॥ इति ॥ नवमः परिच्छेदः ॥ ५७ ॥

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