Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Jinmandangiri, Chaturvijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 137
________________ HARASHEKHARASॐ तुझ पसाया सवं भवं मए विहि॥८३॥ तओं विहिणा दहिऊणं छगणाई पंचवन्नरयणाई। निम्मवि स्त्रो सिठ्ठी अप्पह दित्ता पाहुए ॥८४ ॥ तो तुट्ठो नरनाहो अप्पइ दत्तस्स नयरसिडिपयं । बिम्हिअहियो लोओ मन्नइ तं बुद्धिगुणकलिअं॥८५॥ रयणहिँ तओ जाओ दत्तो नयरंमि विस्सुओ धणवं । विहिणा जिर्णिदधम्म आराहइ तिविहसंसुद्धं ॥८६॥ जह सो जणगनिरूविअपत्तगलिहियत्यनिचलो संतो। जाओ भायणमइरेगभावजो चिंतिमत्थाणं ॥ ८७ ॥ आणाइ जिर्णिदाणं पत्तगसरिसीद निच्छियाइ तहा । को वि जइ होइ कत्थ वि बालिसलोगो व हसणीओ॥८॥ इइ सोमाए भणिों सुणिऊणं सिरिमई भणइ एवं । जुग्गा मि तुमंपियसहि ! सम्मंजिणभणिअधम्मस्स ॥८९॥ एरिसधम्मवियारो जीए तह माणसंमि संसुद्धो । ता गिण्ह गुरुसमीवे सायरं धम्मवररयणं ॥९॥ बारसवयसंपुग्नं सावगधम्म समतवयमूलं। तो सोमा पडिवजह समहं सिरिसुवयापासे ॥९१ ॥ अह समणीणं गुरुणी पभणइ सोमं गिहत्थधम्मरिहं । भहे ! एसो धम्मो पत्तो तुमए सुकयजोगा ॥९२ ॥ ता धम्माणुटाणे करेहि जनं सया विहिपहाणे । धारितु सुद्धभावं वज्जिा सयलं वितहभावं ॥९३॥ थोवो वि निरइयारो धम्मो |विहिओ करेइ सिद्धिसुहं । सुबहू वि साइयारो परमत्थे व अप्पड़ ॥ ९४ ॥ ससउ च ससिं लोहस्स गुणगणं मासिलुज सियदूरं । थोवो वि वितहभावो धम्मं रम्मं पि दूसेइ ॥ ९५ ॥ वयभंगे गुरुदोसो थोवस्स वि पालणा

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