Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Jinmandangiri, Chaturvijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust

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Page 131
________________ ANSKRISts बसा। रूबाइगुणोवेया नारी विहवत्तणमुवेइ ॥६॥ कम्मणथंभणमोहणवसिकरणाईहिं कृरकम्मेहिं । जा नियसोहग्गकरा सा विहवा होइ लहुआ वि ॥७॥ लहुकम्मतया तीए कमेण जिणसासणंमि अणुराओ। सुहगुरुजोगो जाओ सम्मं मंजिट्टरागसमो॥ ८॥ गिहकजं नहि रुच्चइ आलावो धम्मवजिएहि समं । इकु चित्र धम्मरागो वुड्डइ अणुवासरं तीए ॥९॥ जिणपडिमाणं पूअं अट्टविहं भावओ करेमाणी। मन्नइ निअजम्मफलं देवाण वि दुल्लहं एसा ॥१०॥ पढइ नवाई सुआइँ भणिआण वियारमायरइ निचं । आवस्सएसु सम्मं विहिपुवं उज्जमइ निचं है॥ ११ ॥ गुणिलोअसंगजोगे तूसइ रूसइ पराववाएसु । भूसइ सीलालंकारजोगओ नियकुलं सययं ॥ १२ ॥ त्रिभिविशेषकम् ॥ तीए पुरोहिअसुआ सोमा नामेण पियसही आसि । कालेण पीइवुड्डी जाया दुण्हं पि अइनिविडा, ॥ १३॥ ताणं धम्मवियारो जओ तओ कारणा पयस॒तो। सिरिमइपडिबंधाओ निआओ मिच्छत्तपसमाओ॥१४॥ सम्मत्तलाहेहऊ जाओ सोमाइ सयलसुक्खकरो। बालजणविहिअधूलीहरसरिसो भाइ तीइ भवो ॥१५॥ युग्मम्॥यतः। आस्तां सचेतसः सङ्गात्सदसत्स्यात्तरोरपि । अशोकः शोकनाशाय कलये तु कलिद्रुमः ॥१॥ __ परितुलिअअप्पसत्तीइ तीऍ जाया अणुव्वएसु रई। तो सा पभणइ सिरिमइ ! जह तुज्झ तहेव मम सम्मं ॥१६॥ |हुंति वयाइँ तहा कुणु कयंमि एयंमि सरिसचरिआणं । धम्मपरिपालणेणं तुल चिअ जं गई होइ ॥ १७ ॥ भणियं ।। च सिरिमईए तिणतुल्लत्तणण गणियपाणाणं । धीराण जणाण इमाइँ हुंति न पुणो अ इयरेसिं ॥ १८ ॥ सोमे !!

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