Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Jinmandangiri, Chaturvijay
Publisher: Jinshasan Aradhana Trust
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धर्मपरीक्षा॥५१॥
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व्रतपालनेन पञ्चधा। षद्विधावश्यकाराघनेन पोढा । नैगमादिनयगोचरविचारणया सप्तधा । प्रवचनमातृपालनेना- नवमः टधा । नवविधब्रह्मचर्यगुप्त्याराधनन नवधा । क्षान्सादिभिर्दशधा । इत्यनेकविधत्वेऽपि सम्यग्दर्शनसंशुद्धद्वादशव्रत-13
परिच्छेदः वासितखान्तस्य षड्विधावश्यकपालनरूपो ज्ञेयः । सोऽपि विध्यविधिविहितत्वेन द्विधा । तत्र विधिः सम्यग्ज्ञानक्रियासारः श्रीसर्वज्ञाराधनमयः, स एव निखिलकर्ममलापनयनेन परमविशुद्धिहेतुः । यतः
जह भोअणमविहिकयं मारेइ नरं विहिकयं जियावेइ । तह अविहिकजो धम्मो देइ भवं विहिकओ मुक्खं ॥१॥ आसन्नसिद्धिआणं विहिबहुमाणं हविज केसि पि । विहिचायोऽविहिभत्ती अभवजिअदूरभवाणं ॥२॥ धन्नाणं विहिजोगो विहिपक्खाराहगा सया धन्ना। विहिबहुमाणी धन्ना विहिपक्खाऽदूसगा धन्ना ॥३॥ आणाखंडणकारी जइ वि तिकालं महाविभूईए । पूएइ बीबरायं सचं पि निरत्ययं तस्स ॥४॥ विहिसुद्धमणुट्ठाणं सुभावणाभाविकं भवीण जणा। विहइ कम्मजालं सिद्धिस्सिवसूरदेवस्स ॥५॥ विहि पि भावरहि कहिं पि ईसिं सुहं विहिजपुर । जणइ दुरंतमवस्सं मववित्थारं जजो मणिवं ॥६॥ कायकिरिआइजोगा खविआ मंडुक्कचुन्नतुल्ल त्ति । ते चेव भावणाए वि दहतन्छारतुल ति ॥७॥
॥५१॥ पडावश्यकशुद्धिस्त्वेवम् । यथासुत्तत्यकाठजोगोवओगउवगरणठाणगुरुसुद्धो। बावस्सयवावारो विहिजो हुसिदिसुहफलजो॥ ८॥
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