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उपाश्रय की जमीन हेतु या उपाश्रयादि स्थान बनाने हेतु देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य, वैयावच्च द्रव्य आदि का उपयोग नहीं हो सकता । वैसे ही उन खातों में से ब्याजी या बिनव्याजी लोन भी नहीं ले सकते ।
लकी ड्रॉ (भाग्यलक्ष्मी) जैसी अहितकर पद्धतियाँ अपनाकर भी उपाश्रय हेतु द्रव्य इकट्ठा करना उचित नहीं है।
उपाश्रय में शय्यातर' की जो राशि इकट्ठी की जाती है, उसका उपयोग उपाश्रय निर्माण एवं उसकी मरम्मत में ही किया जा सकता है ।
कहीं-कहीं उपाश्रय एवं जिनमंदिर आजुबाजु में ही होते हैं । वहाँ पर उपाश्रय के अंदर या बाहर, कहीं भी, अनजाने में भी देवद्रव्य की चीज वस्तुएँ, मार्बल, टाईल्स, ईट, सिमेंट आदि का इस्तेमाल न हो इसका पक्का ध्यान रखें ।
भूल से कदाचित् ऐसा बन जाए तो तुरंत उतनी राशि देवद्रव्य में जमा कर देना चाहिए । ऐसा न करने पर देवद्रव्य के भक्षण का दोष लगता है ।
उपाश्रय की कोई भी चीज (पाट-पाटला-जाजम आदि) धर्म के कार्य हेतु कोई ले जाए तो उसका नकरा (शुल्क) साधारण खाते में (उपाश्रय खाते में) देना चाहिए । उपाश्रय या जिनमंदिर की कोई भी चीजें सांसारिक कार्य हेतु नहीं दे सकते ।
१४ - आयंबिल तप| आयंबिल तप हेतु किया गया चंदा, चैत्र एवं आश्विन मास की ओलियों के आदेश की बोलियाँ या नकरे का द्रव्य, आयंबिल हेतु कायमी तिथियों की आय तथा आयंबिल खाते के भंडार की आय : आयंबिल तप खाते में जमा होते हैं । उपयोग :
यह द्रव्य आयंबिल तप करने वाले तपस्वियों की भक्ति में या उस हेतु की जानेवाली व्यवस्था में खर्च कर सकते हैं ।
इस खाते में वृद्धि हो तो अन्य गाँव-शहरों के आयंबिल तप करनेवालों की भक्ति हेतु भेज सकते हैं ।
संक्षेप में कहना हो तो यह द्रव्य आयंबिल तप का प्रचार-प्रसार करने हेतु ही होने
धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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