Book Title: Dharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Author(s): Dharmdhwaj Parivar
Publisher: Dharmdhwaj Parivar

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Page 135
________________ देवद्रव्य के प्रश्न का शास्त्रीय आधार से चर्चा करके साधु सम्मेलन में निर्णय हो चुका है । अखिल भारतवर्षीय साधु सम्मेलन की एक पुस्तक प्रताकार में प्रकाशित हुई है, उसे देख लेना । वहाँ आ.विजय अमृतसूरिजी तथा मुनि श्री पार्श्वविजयजी आदि हैं - उन से स्पष्टीकरण प्राप्त करना तथा उनकी सुखशाता पूछना । यही अविच्छिन्न प्रभावशाली श्री वीतराग शासन को पाकर धर्म की आराधना में विशेष उद्यमवंत रहनायही नरजन्म पाने की सार्थकता है । (पू.आ.भ. श्री विजयनीति सू.म. श्री के समुदाय के) (८) अहमदाबाद दि. ११-१०-५४ सुयोग्य श्रमणोपासक श्रीयुत् शा. अमीलालभाई जोग, धर्मलाभ । पत्र दो मिले । कार्यवशात् विलम्ब हो गया । खैर । आपने चौदह स्वप्न, पालना, घोडियां और उपधान की माला की घी की बोली की रकम किस खाते में जमा करना-आदि के लिए लिखा । उसका उत्तर यह है कि परम्परा से आचार्य देवों ने देवद्रव्य में ही वृद्धि करने का फरमाया है । अतः वर्तमान वातावरण में उक्त कार्य में शिथिलता नहीं होनी चाहिये अन्यथा आपको आलोचना का पात्र बनना पड़ेगा । किमधिकम् । द. : 'वि. हिमाचलसूरि का धर्मलाभ' पालीताणा से लि. भुवनसूरिजी का धर्मलाभ । कार्ड मिला । समाचार जाने। स्वप्नों की बोली का पैसा देवद्रव्य में ही जाना चाहिए । साधारण खाते में वह नहीं ले जाया जा सकता। पूज्य सिद्धिसूरिजी म. लब्धिसूरिजी म., नेमिसूरिजी म., सागरजी म. आदि ५०० साधुओं की मान्यता यही है । आराधना में रत रहना । पारणा की बोली भी देवद्रव्य में ही जाती है । सुदी १२ (१०) . दाठा (जि. भावनगर) श्रावण सु. १२ पू.पा.आ.श्री. ऋद्धिसागरसूरिजी म. सा. तथा मुनि श्री मानतुंगविजयजी म. की ओर से धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ? ११५ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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