Book Title: Dharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Author(s): Dharmdhwaj Parivar
Publisher: Dharmdhwaj Parivar

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Page 142
________________ टिप्पण-गत वर्ष हमारा चातुर्मास बम्बई आदीश्वरजी धर्मशाला पायधुनी पर था । स्वप्न, पारणा आदि सब आमदानी देवद्रव्य में ले जाने का निश्चित् ठहराव कर श्रीसंघने हमारी निश्रा में स्वप्न उतारे थे । यह आपकी जानकारी हेतु लिखा है । इस संबंध में विशेष कोई जानकारी चाहिए तो खुशी से लिखना । भवभीरुता होगी तो आत्मा का कल्याण होगा । संघ में सब को धर्म लाभ कहना ।। (उक्त अभिप्राय पू.आचार्य म. श्री सागरानन्दसूरीश्वरजी म. श्री के प्रशिष्य रत्न स्व. उपाध्यायजी म. श्री धर्मसागरजी महाराज का है ।) । (२०) - श्री नेमीनाथजी उपाश्रय बम्बई नं. ३ ता. १२-८-५४ लि धुरंधरविजय गणि, तत्र श्री देवगुरु-भक्तिकारक अमीलाल रतिलाल जैन योग्य धर्मलाभ । आपका पत्र मिला । यहां श्री देवगुरु प्रसाद से सुख शान्ति है । स्वप्नादि की घी को आय के विषय में पूछा सो हमारे क्षयोपशम के अनुसार सुविहित गीतार्थ समाचारी का अनुसरण करनेवाले भव्यात्मा उसे देवद्रव्य में ले जाते हैं । हमें वही उचित प्रतीत होता है । विशेष स्पष्टीकरण साक्षात् में किया जा सकता है । धर्माराधना में यथासाध्य उद्यमवंत रहें । (उक्त अभिप्राय पू.आ.म. श्री विजय नेमिसूरीश्वरजी म. श्री के पट्टालंकार पू.आ.म. श्री विजय अमृतसूरीश्वरजी म. श्री के पट्टालंकार स्व. पू.आ.भ. श्री विजय धर्मधुरन्धरसूरीश्वरजी म. का है ।) (२१) राजकोट ता. ८-८-५४ पं. कनकविजय गणि आदि ठाणा ६ की तरफ से तत्र देव-गुरु-भक्तिकारक श्रमणोपासक सुश्रावक अमीलाल रतिलाल योग्य धर्मलाभपूर्वक लिखना है कि यहाँ देवगुरु कृपा से सुखशाता है । आपका ता. ४-८-५४ का पत्र मिला । उत्तर में लिखना है कि स्वप्न, पारणा इन दोनों की आय देवद्रव्य में गिनी जाती है । अब तक सुविहित शासनमान्य पू. आचार्य देवों का यही अभिप्राय है । श्री तीर्थंकर देवों की माता इन स्वप्नों को देखती है । अतः उस निमित्त जो भी बोली बोली जाती है वह शास्त्र-दृष्टि से तथा व्यवहारिक दृष्टि से देवद्रव्य ही गिनी जाती है । |१२२ धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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