Book Title: Dharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Author(s): Dharmdhwaj Parivar
Publisher: Dharmdhwaj Parivar

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Page 147
________________ पूज्य आत्मारामजी म. के ही आज्ञावर्ती मुनिराजश्री भी स्पष्ट कहते हैं कि स्वप्न की आय देवद्रव्य में ही जाती है । [दूसरा महत्त्वपूर्ण पत्र यहाँ प्रकाशित हो रहा है । यह भी बहुत ही उपयोगी बात पर प्रकाश डालता है । पू.आ.भ. श्री विजयानन्दसूरिजी म. श्री अपरनाम पू. आत्मारामजी महाराजश्री के समुदाय में उनके स्वयं के हस्त दीक्षित प्रशिष्यरत्न पू. शान्तमूर्ति मुनिराज हंसविजयजी महाराज-जो पू.आ.भ. श्री विजयवल्लभसूरिजी महाराजश्री के श्रद्धेय तथा आदरणीय थे - ने पालनपुर श्रीसंघ द्वारा पूछे गये प्रश्नों के उत्तर में जो जो बातें शास्त्रीय प्रणाली और गीतार्थ महापुरुषों को मान्य हो इस रीति से बताई हैं, वे आज भी उतनी ही मननीय और आचरणीय है । उनमें देवद्रव्य की व्यवस्था, ज्ञानद्रव्य तथा स्वप्नों की आय आदि की शास्त्रानुसारी व्यवस्था के सम्बन्ध में उन्होंने बहुत ही स्पष्ट और सचोट मार्गदर्शन दिया है, जो भारतभर के श्रीसंघों की अनन्त उपकारी परमतारक श्री जिनेश्वर भगवन्त की आज्ञा की आराधना के आराधकभाव को अखण्डित रखने के लिए जागृत बनने की प्रेरणा देता है । सब लोग सहृदय भाव से उस प्रश्नोतरी पर विचार करें ।) श्री पालनपुर संघ को मालूम हो कि आपने आठ बातों का स्पष्टीकरण करने हेतु मुझे प्रश्न पूछे हैं । उनका उत्तर मेरी बुद्धि के अनुसार आप के सामने रखता हूँ । प्रश्न-१ पूजा के समय घी बोला जाता है उसकी उपज किस खाते में लगाई जाय ? उत्तर-१ पूजा के घी की उपज देवद्रव्य के रूप में जीर्णोद्धार आदि के कार्य में लगाई जा सकती है। प्रश्न-२ प्रतिक्रमण के सूत्रों के निमित्त घी बोला जाता है, उसकी आय किस काम में लगाई जाय ? .... उत्तर-२ प्रतिक्रमण सूत्र-सम्बन्धी आय ज्ञान खाते में-पुस्तकादि लिखवाने के काम में ली जा सकती है । प्रश्न-३ स्वप्नों के घी की आय किस काम में ली जाय ? उत्तर-३ इस सम्बन्ध के अक्षर किसी पुस्तक में मुझे दृष्टिगोचर नहीं हुए परन्तु श्रीसेनप्रश्न में और श्रीहीरप्रश्न नाम के शास्त्र में उपधानमाला पहनने के घी को आय को देवद्रव्य में गिनी है । इस शास्त्र के आधार से कह सकता हूं कि स्वप्नों की आय धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ? १२७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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