Book Title: Dharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Author(s): Dharmdhwaj Parivar
Publisher: Dharmdhwaj Parivar

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Page 149
________________ जरूरत है । अतः पुण्य करते समय या प्रत्येक शुभ प्रसंग पर शुभ खाते में अवश्य रकम निकालने और निकलवाने की योजना करनी चाहिए, जिससे यह खाता तिरता हुआ हो जावेगा फिर उसकी बूम नहीं सुनाई देगी । यही श्रेय है । लि. हंसविजय (४) स्वप्न की उपज देवद्रव्य में ही जानी चाहिए । स्वप्नों की और मालारोपण की उपज देवद्रव्य में ही जानी चाहिए । इस विषय में पू. सागरानंदसूरीश्वरजी महाराजश्री का स्पष्ट शास्त्रानुसारी फरमान स्वप्नों की आय के विषय में तथा उपधान तप की माला संबंधी आय के विषय में श्रीसंघ को स्पष्ट रीति से मार्गदर्शन देने हेतु पू. पाद आचार्य भगवंत श्री सागरानन्दसूरीश्वरजी महाराजश्रीने 'सागर समाधान' ग्रन्थ में जो फरमाया है, वह प्रत्येक धर्माराधक के लिए जानने योग्य है ।। प्रश्न-उपधान में प्रवेश तथा समाप्ति के अवसर पर माला की बोली की आय ज्ञानखाते में न ले जाते हुए देवद्रव्य में क्यों ले जायी जाती है ? समाधान-उपधान ज्ञानाराधन का अनुष्ठान है, इसलिए ज्ञान खाते में उसकी आय जा सकती है-ऐसा कदाचित् आप मानते हों । परन्तु उपधान में प्रवेश से लेकर माला पहनने तक की क्रिया समवसरण रूप नंदि के आगे होती है । क्रियाएँ प्रभुजी के सम्मुख की जाने के कारण उनको उपज देवद्रव्य में ले जानी चाहिए । प्रश्न-स्वप्नों की उपज तथा उनका घी देवद्रव्य खाते में ले जाने की शुरूआत अमुक समय से हुई है तो उसमें परिवर्तन क्यों नहीं किया जा सकता है ? समाधान-अर्हन्त परमात्मा की माता ने स्वप्न देखे थे, अतः वस्तुतः उसकी सारी आय देवद्रव्य में जानी चाहिए अर्थात् देवाधिदेव के उद्देश्य से ही यह आय है । ध्यान में रखना चाहिए कि च्यवन, जन्म, दीक्षा - ये कल्याणक भी श्री अरिहंत परमात्मा के ही हैं । इन्द्रादिकों ने श्री जिनेश्वर भगवान की स्तुति भी गर्भावतार से ही की है । चौदह स्तप्नों का दर्शन अरिहन्त भगवान कुक्षि में आवें तभी उनकी माता को होता है । तीन लोक में प्रकाश भी इन तीनों कल्याणकों में होता है । अतः धार्मिक जनों के लिए गर्भावस्था से ही भगवान् अरिहंत भगवान हैं । - ‘सागर समाधान' से | धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ? १२९ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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