Book Title: Dharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Author(s): Dharmdhwaj Parivar
Publisher: Dharmdhwaj Parivar

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Page 154
________________ 'यदि देव के निमित्त ही कराये गये आभूषण हों तो अपने उपयोग में नहीं लिये जा सकते।' ( सेनप्रश्न : प्रश्न : ३९, उल्लास : ३, इस से यह स्पष्ट है कि देव के लिए कराये गये, देव की भक्ति के लिए कराये गये आभूषण, घर मन्दिर में देव को समर्पित करने के उद्देश्य से कराये गये आभूषण श्रावक को अपने उपयोग में लेना नहीं कल्पता तो स्वप्न की बोली प्रभु भक्ति निमित्त प्रभु के च्यवन कल्याणक प्रसंग को लक्ष्य में रखकर बोली जाने के कारण देवद्रव्य गिनी जाती है उसका उपयोग साधारण खाते में कभी नहीं हो सकता, यह बात खासतौर से ध्यान में रख लेनी चाहिए । पेज २०२) ‘सेनप्रश्न' के तीसरे उल्लास में पं. श्री श्रुतसागरजी गणिकृत प्रश्नोत्तर में प्रश्न है कि, ‘देवद्रव्य की वृद्धि के लिए उस धन को श्रावकों द्वारा ब्याज से रखा जा सकता है या नहीं ? और रखनेवालों को वह दूषणरूप होता है या भूषणरूप ? इस प्रश्न का उत्तर पू.आ.म. श्री विजयसेनसूरीश्वरजी महाराज स्पष्ट रूप से फरमाते हैं कि, श्रावकों को देवद्रव्य ब्याज से नहीं रखना चाहिए क्योंकि निःशूकत्व आ जाता है । अतः अपने व्यापार आदि में उसे ब्याज से नहीं लगाना चाहिये । 'यदि अल्प भी देवद्रव्य का भोग हो जाय तो संकाश श्रावक की तरह अत्यन्त दुष्ट फल मिलता है । ' ऐसा ग्रन्थ में देखा जाता है । ( सेनप्रश्न : प्रश्न २१, उल्लास : ३, पेज २७३) इससे पुनः पुनः यह बात स्पष्ट होती है कि, देवद्रव्य की एक पाई भी पापभीरु सुज्ञ श्रावक अपने पास ब्याज से भी नहीं रखे । तो जो बोली बोलकर देवद्रव्य की रकम अपने पास वर्षों तक बिना ब्याज से केवल उपेक्षा भाव से रखे रहते हैं, भुगतान नहीं करते हैं, उन बिचारों की क्या दशा होगी ? इसी तरह बोली में बोली हुई रकम को अपने पास मनमाने ब्याज से रखे रहते हैं, उनके लिए वह कृत्य सचमुच सेनप्रश्नकार पूज्यपादश्री फरमाते हैं उस तरह 'दुष्ट फल देनेवाला बनता है' यह निःशंक है । 'देवद्रव्य के मकान में भाड़ा देकर रहना चाहिये या नहीं ?' इस विषय में पं. हर्षचन्द्र गणिवर कृत प्रश्न इस प्रकार हैं : Jain Education International 'किसी व्यक्ति ने अपना घर भी जिनालय को अर्पण कर दिया हो, उसमें कोई भी | १३४ धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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