Book Title: Dharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Author(s): Dharmdhwaj Parivar
Publisher: Dharmdhwaj Parivar

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Page 167
________________ 1 सवाल साधारण खाता सातों क्षेत्र के कार्य में उपयोगी बनता है । इस खाते में राशि कम आती है तो उसे बढ़ाने के कुछ शास्त्र सापेक्ष उपाय बताने की कृपा करें जवाब - साधारण खाते की राशि १ - जिनप्रतिमा, २ - जिनमंदिर, ३ - जिन आगम-शास्त्र, ४-जिन के साधु, ५-जिन की साध्वी, ६ - जिन के श्रावक व ७ - जिन की श्राविका इन जैनधर्म में प्रसिद्ध सात क्षेत्रों में जहाँ कहीं भी आवश्यकता हो उस प्रमाण में खर्च कर सकते हैं । इन सातों क्षेत्रों में से ऊपरी पांचों क्षेत्रों की राशि ६ - श्रावक व ७ - श्राविका क्षेत्र में कभी भी नहीं जा सकती । जरूरत पड़ने पर नीचे के क्षेत्र की राशि ऊपर के क्षेत्र में इस्तेमाल कर सकते हैं । - I ६- श्रावक व ७ - श्राविका ये दोनों क्षेत्र सातों क्षेत्र में धन राशि की आवक के प्रधान (मुख्य) स्रोत हैं । ये दो क्षेत्र गंगोत्री जैसे हैं, जिनसे गंगा का उद्गम होता है । इन दो क्षेत्रों के निमित्त से जो भी बोली- उछामनी या चढ़ावा होता है वह सात क्षेत्र साधारण में जमा होता है । इस में से सातों क्षेत्र में जरूरत अनुसार व्यय कर सकते हैं । पर कोई श्रावक-श्राविका स्वयं इसमें से ग्रहण नहीं कर सकते । संघ देवे तो ले सकते हैं । प्रभावना या संघभोजों जैसे कार्यों में यह राशि खर्च न करें । क्योंकि साधारण खाता बड़ी मुश्किल से खड़ा होता है । I • साधारण खाते की आवक निम्न अनुसार हो सकती है । संघ की ऑफिस का उद्घाटन करने का लाभ नगर शेठ बनने का लाभ (चढ़ावा ) • संघ के मुनिम (मेहताजी) बनने का लाभ - स्वामिवात्सल्य करवाने का लाभ (स्वामिवात्सल्य होने के बाद बची रकम) नवकारसी करवाने का लाभ ( नवकारसी होने के बाद बची रकम ) श्रीसंघ के महोत्सव की आमंत्रण पत्रिका में जय जिनेन्द्र / प्रणाम / लिखितं लिखने का लाभ - महोत्सव के आधारस्तंभ, सहयोगी आदि रूप में पत्रिका में नाम लिखने का लाभ • संघ के उपाश्रय के उद्घाटन की बोली बोलीयों के प्रसंग पर संघ को बिराजमान करने की, जाजम बिछाने की बोली का द्रव्य धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ? १४७ 7 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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