Book Title: Dharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Author(s): Dharmdhwaj Parivar
Publisher: Dharmdhwaj Parivar

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Page 168
________________ - उपाश्रय संबधी अन्य बोलियाँ व चन्दा - सात क्षेत्र साधारण खाते के भंडार से निकली राशि - तपस्वी के बहुमान के विभिन्न चढ़ावों की राशि - दीक्षार्थी के बहुमान समारोह के विभिन्न चढ़ावों की राशि - दीक्षार्थी का अंतिम बिदाई (विजय) तिलक करने की बोली श्रीसंघ की ऑफिस पर नूतन वर्ष के दिन प्रथम रसीद काटने का लाभ - ऑफिस के स्थान पर या उपाश्रय में कुंकुम के हस्तचिह्न-थापा लगाने का लाभ - साधारण खाते के स्थान पर बने व प्रभुजी की जिनपर दृष्टि न गिरती हो ऐसे स्थान पर स्थापित शासन मान्य देव-देवी की मूर्ति भरवाना, प्रतिष्ठा प्रवेश करवाना, उनकी पूजा, चूंदरी खेस चढ़ाना, उनके समक्ष के भंडारों की आय आदि भी सातक्षेत्र साधारण खाते की आय गिनी गई है । - किसी प्रभावक सुश्रावक, श्राविका की प्रतिमा या प्रतिकृति का उद्घाटन (अनावरण) आदि करने का लाभ - संघ के प्रतिघर, प्रति रसोई घर, प्रति चूल्हा निश्चित किया शुल्क (लागा-लगान) या चंदा - संघ के सदस्य बनने हेतु निश्चित किया गया नकरा-शुल्क फी - साधारण खाते की प्रॉपर्टी - फर्निचर आदि बेचने से आई हुई राशि - श्रावकों द्वारा साधारण खाते में प्राप्त नगद नारायण व घर-दुकान-बाजार-खेत आदि की आवक - साधारण खाते के स्थानों का प्राप्त किराया - साधारण खाते की ED. से आय ब्याज - साधारण खाते की राशि से हुए व्यापार का मुनाफा - इस तरह और भी कई मार्गों से साधारण खाता पुष्ट किया जा सकता है । लेकिन इतना जरूर याद रखें कि - देवद्रव्य, स्वप्न के चढ़ावों आदि किसी भी अन्य पूज्य पवित्र ऊपरी खातों के लाभों के साथ साधारण का सरचार्ज लगाकर साधारण खाता न बनाएँ । देवद्रव्यादि पर टैक्स, सरचार्ज आदि लगाकर साधारण की राशि इकठ्ठा करना महापाप है । वह साधारण नहीं अपितु एक प्रकार का देवद्रव्य आदि ही बन जाता है । अतः ऐसी भूल कभी न करें। स्वप्न द्रव्य भी देवद्रव्य ही है । उसे १००% या ६०% ५०% ४०% आदि किसी भी प्रतिशत से साधारण में न ले जाएँ । वह १००% देवद्रव्य ही है । देवद्रव्य में ही ले जाना चाहिए। धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ? | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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