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. ९. विभिन्न क्षेत्र के विभाग की रकम का ब्याज भी विविध खाते में जमा करना सरल हो जाता है। कुछ ही निश्चित खाते हों तो भी विविध क्षेत्र की रकम का औसत के अनुसार ब्याज भी आवंटित किया जा सकता है।
१०. रजिस्टर्ड ट्रस्ट होने से बैंक में लॉकर-सेफ की भी सुविधा मिलती है। जहां परमात्मा के रजिस्टर्ड गहने, महत्वपूर्ण दस्तावेजों की सुरक्षा हो सकती है।
११. धर्मद्रव्य का शास्त्रीय खर्च भी रसीद लेकर किए जाने से तथा रसीद के आधार पर ही दस्तावेज में उस खर्च का उल्लेख किए जाने से संचालन की स्पष्ट पारदर्शिता बनी रहती है।
१२. संस्था के मुनीम अथवा स्टाफ को भी वैध मस्टर रोल पर लिया जा सकता है। उनके वेतन आदि के खर्च दस्तावेज में बताए जा सकते हैं।
१३. एक ही उद्देश्य से स्थापित अन्य ट्रस्ट को भेंट अथवा लोन देना अथवा लेना हो तो लिया-दिया जा सकता है।
१४. ट्रस्ट न किया जाए तो आज की वैधानिक परिस्थिति के अनुसार दानवार द्वारा दी गई रकम संघ में जमा न होकर उसका दुर्व्यय होने की संभावना रहती है। दानवीर की ओर से किया गया नकद भुगतान भी यदि ट्रस्ट का वैध लेटरपेड न हो तो अयोग्य मार्ग पर जाने की संभावना रहती है, जबकि ट्रस्ट वैध हो तो ऐसा होने की संभावना नहीं रहती है।
१५. संस्था की किसी भी सम्पत्ति का क्रय-विक्रय ट्रस्ट के नाम से ही हो सकता है। इससे भविष्य में हक-दावे का प्रश्न उत्पन्न नहीं होता है। सम्पत्ति के क्रय-विक्रय में हए लाभ-हानि का भी हिसाबी दस्तावेज में उल्लेख किया जा सकता है।
१६. दानवीर को रजिस्टर्ड ट्रस्ट की रसीद मिलने से दान में विश्वास उत्पन्न होता है।
इसलिए मौजूदा वैधानिक परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए ट्रस्ट का पंजीकरण कराना अनिवार्य बनाया गया है।
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धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ?
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