Book Title: Dharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Author(s): Dharmdhwaj Parivar
Publisher: Dharmdhwaj Parivar

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Page 150
________________ (4) स्वप्नादि की उपज देवद्रव्य में ही जावे वि. सं. १९९० वि.सं. २०१४ इन दोनों श्रमण-सम्मेलन में सर्वानुमति से हुए शास्त्रानुसारी निर्णय देवद्रव्यादि की व्यवस्था तथा अन्य भी धर्मादा खातों की आय तथा उसका सद्व्यय इत्यादि की शास्त्रानुसारी व्यवस्था के सम्बन्ध में श्रीसंघों को शास्त्रीय रीति से सुविहितमान्य प्रणालिका के अनुसार मार्गदर्शन देने की जिनकी महत्त्वपूर्ण जवाबदारी है, उन जैनधर्म या जैनशासन के संरक्षक पूज्य आचार्य भगवन्तों ने पिछले वर्षों में तीन श्रमण-सम्मेलनों में महत्त्वपूर्ण मार्गदर्शक प्रस्तावों द्वारा श्रीसंघ को जो स्पष्ट और सचोट शास्त्रानुसारी मार्गदर्शन दिया है वे महत्त्वपूर्ण उपयोगी निर्णय यहाँ प्रकाशित किये जा रहे हैं । ये निर्णय सदा के लिए भारत वर्ष के श्रीसंघों के लिए प्रेरणादायी हैं । इनका पालन करने की श्रीसंघों की अनिवार्य जवाबदारी है । श्रमणसंघ सम्मेलन निर्णय देवद्रव्य, ज्ञानद्रव्य या अन्य जिनमन्दिर उपाश्रय, ज्ञानभण्डार तथा साधारण खाता आदि के द्रव्य की आय को शास्त्रानुसार किस प्रकार सद्व्यय करना, यह श्रीसंघों की जवाबदारी है । श्रमणप्रधान श्रीसंघों को सुविहितशास्त्रानुसारी प्रणाली के प्रति वफादार रहकर पू.पाद परमगीतार्थ सुविहित आचार्य भगवन्तों की आज्ञानुसार सब धार्मिक स्थावर-जंगम जायदाद का वहीवट, व्यवस्था, संरक्षण एवं संवर्धन करना चाहिए । इस बात को लक्ष्य में लेकर श्री श्रमणसंघ सम्मेलन द्वारा किये गये उपयोगी निर्णय यहां प्रसिद्ध किये जा रहे हैं । उनसे सूचित होता है कि श्रीसंघों को उन निर्णयों का आवश्यकरूप से पालन करना चाहिए । (६) वि.सं. १९९० में राजनगर ( अहमदाबाद) में एकत्रित श्रमण सम्मेलन द्वारा देवद्रव्य सम्बन्धी किया गया महत्त्वपूर्ण निर्णय १. देवद्रव्य, जिन चैत्य तथा जिनमूर्ति सिवाय अन्य किसी भी क्षेत्र में काम में नहीं लिया जा सकता । २. प्रभु के मन्दिर में या मन्दिर के बाहर किसी भी स्थान पर प्रभु के निमित्त जो जो बोलियाँ बोली जावें, वह सब देवद्रव्य कहा जाता है । धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे १३० Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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