________________
स्वप्न उदारता तीर्थंकर भगवान का च्यवन कल्याणक हैं । प्रभास पाटण में हमारे गुरुदेव पू. आ.श्री चन्द्रसागरसूरिजी महाराज के हस्त से अंजन शलाका हुई थी । उसमें पांचों कल्याणक की आय देवद्रव्य में ली गई है । तो स्वप्न, पारणा, च्यवन-जन्ममहोत्सव को प्रभुभक्ति के निमित्त बोली गई बोली देवद्रव्य ही गिननी चाहिये । इसमें शंका का कोई स्थान नहीं है । तथापि स्वप्न तो भगवान की माता को आते हैं आदि खोटी दलीलें दी जाती है । इस विषय में जो प्रश्न पूछने हो पूछ सकते हैं । सब का समाधान किया जावेगा । ___ इस सम्बन्ध में लगभग सब आचार्यों का एक ही अभिप्राय है जो शान्ताक्रुझ संघ
की तरफ से पुछाये गये प्रश्न के उत्तर रूप में 'कल्याण' मासिक में प्रसिद्ध भी हुआ है । 'सिद्धचक्र' पाक्षिक में पू.स्व. आगमोद्धारक श्री सागरजी महाराजा ने भी देवद्रव्य में इस राशि को ले जाना बताया है ।
अहमदाबाद, सूरत, खम्भात, पाटन, महेसाणा, पालीताना आदि बड़े संघ परम्परा से इस राशि को देवद्रव्य में ले जाते हैं । केवल बम्बई का यह चेपी रोग कुछ स्थानों पर फैला हो, यह संभावित है । परन्तु बम्बई में भी कोई स्थानों पर आठ आनी या दशआनी या अमुक भाग साधारण खाते में ले जाया जाता है, परन्तु वह देवद्रव्य मन्दिर के साधारण अर्थात् पुजारी, मन्दिर की रक्षा के लिए भैया, मन्दिर का काम करनेवाले नौकर के वेतन आदि में काम लिया जाता है न कि साधारण अर्थात् सब जगह काम में लिया जा सके इस अर्थ में। इस संबंध में जिसको समझना हो, प्रभु की आज्ञानुसार धर्म पालना हो, व्यवहार करना हो तो प्रत्येक शंका का समाधान योग्य रीति से किया जावेगा । ।
(२) उपधान के लिए श्रमण संघ के सम्मेलन का स्पष्ट ठहराव है कि वह देवद्रव्य में ले जाया जाय । इसमें कोई शंका नहीं है, सब जगह ऐसी ही प्रवृत्ति है । बम्बई में दो वर्ष से ठाणा और घाटकोपर में वैसा परिवर्तन करने का प्रयत्न किया गया, परन्तु वहां भी संघ में मतभेद है । अतःएव उसे निर्णय नहीं कहा जा सकता ।
तात्पर्य यह है कि उक्त दोनों प्रकार की आय को देवद्रव्य में ले जाना शास्त्र सम्मत एवं परंपरा से मान्य है । यदि कोई समुदाय अपनी मति-कल्पना से इच्छानुसार प्रवृत्ति करे तो वह वास्तविक नहीं मानी जा सकती । सुज्ञेषु किं बहुना ? धर्म ध्यान करते रहना ।
लि. धर्मसागर का धर्मलाभ
धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ?
१२१
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org