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देवद्रव्य की ही है । इसे साधारण खाते में जो ले जाते हैं वे स्पष्ट रूप से गलती करते हैं । धर्मसाधन में उद्यत रहें ।
लि. आचार्यदेव की आज्ञा से द. : 'मुनि कुमुदविजय की और से धर्मलाभ'
अहमदनगर, खिस्ती गंली जैन धर्मशाला, सुदी १४ पू. पाद आचार्यदेव श्री विजयप्रेमसूरीश्वरजी म. की तरफ से सुश्रावक अमीलाल रतीलाल योग धर्मलाभ वांचना । तारीख १० का. आपका पत्र मिला । चवदह स्वप्न, पारणा, घोड़ियां तथा उपधान की मालादि के घी (आय) को अहमदाबाद मुनि सम्मेलन ने शास्त्रानुसार देवद्रव्य में ले जाने का निर्णय किया है । वही योग्य है । धर्मसाधना में उद्यमवंत रहें।
द. : "त्रिलोचन विजय का धर्मलाभ'
पालीताना साहित्य मन्दिर, ता. ५-८-८४ गुरुवार पू.आ.भ.श्री विजय भक्तिसूरीश्वरजी म. की तरफ से मु. वेरावल श्रावक अमिलाल रतिलाल योग्य धर्मलाभ । आपका पत्र मिला । निम्नानुसार उत्तर जानिए :
(१) उपधान की माला का घी देवद्रव्य के सिवाय अन्यत्र नहीं ले जाया जा सकता ।
(२) चौदह स्वप्न तथा घोडियाँ-पारणा का घी भी देवद्रव्य में ले जाना ही उत्तम है । इन्हें देवद्रव्य में ही ले जाना धोरी मार्ग है । अहमदाबाद के मुनि सम्मेलन में भी यही निर्णय हुआ है कि इसे मुख्यमार्ग के रूप में देवद्रव्य ही माना जाय । इत्यादि समाचार जानना । देवदर्शन में याद करना ।
लि. विजयभक्तिसूरि (द : स्वयं)
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धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ?
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