Book Title: Dharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Author(s): Dharmdhwaj Parivar
Publisher: Dharmdhwaj Parivar

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Page 79
________________ सकता । यदि ऐसे इस्तेमाल किया जाए तो श्रावक-श्राविकाओं को साधु-साध्वी वैयावच्च खाते के द्रव्य के उपभोग का दोष लगता है । विहारादि स्थानों में बनने वाले उपाश्रयों में भी साधु-साध्वी वैयावच्च खाते का द्रव्य इस्तेमाल नहीं हो सकता; क्योंकि, उन उपाश्रयों में भी वंदनादि हेतु श्रावक आते हैं एवं साधु-साध्वियों के साथ विहार में मुमुक्षु आदि भी ठहरते हैं, उनके द्वारा छोटी-बड़ी धर्मक्रिया भी होती रहती है, अतः उन्हें साधु-साध्वी वैयावच्च खाते के द्रव्योपभोग का दोष लगता है । शास्त्रीय मर्यादानुसार सामान्यतः ऊपर के क्षेत्र का द्रव्य नीचे के क्षेत्र में नहीं जाता। 'साधु-साध्वी खाता' ऊपर का क्षेत्र है, जबकि उपाश्रय श्रावक-श्राविका खाते में गिना जाता है और श्रावक-श्राविका खाता नीचे का क्षेत्र है । इस दृष्टि से विचार करने पर भी साधु-साध्वी वैयावच्च खाते के पैसों से उपाश्रय यदि बनाया जाए तो उसमें ऊपर के साधु-साध्वी क्षेत्र के' पैसों को 'नीचे के श्रावक-श्राविका क्षेत्र में इस्तेमाल करने का दोष लगता है। अतः साधु-साध्वी वैयावच्च के पैसों से कोई भी उपाश्रय नहीं बनवा सकते । उपाश्रय का जिर्णोद्धार करना हो तो भी उसमें साधु-साध्वी वैयावच्च खाते की रकम इस्तेमाल नहीं कर सकते, तो फिर नूतन उपाश्रय निर्माण में तो वह इस्तेमाल न ही किया जा सकता, यह समझ सकते हैं । उपाश्रय का जिर्णोद्धार करना हो तो किस द्रव्य में से (किस खाते की आय से) करना इसकी समझ देते हुए ‘श्री संवेग रंगशाला' नामक ग्रंथ में लिखा है कि - "यदि खुद समर्थ हो तो स्वयं, समर्थ न हो तो उपदेश देकर अन्यों द्वारा एवं इन दोनों के अभाव में 'साधारण द्रव्य से' भी पौषधशाला (उपाश्रय) का उद्धार कराएँ (२८८४) इस विधि से पौषधशाला का उद्धार करवाने वाला वह धन्य पुरुष निश्चय से अन्यों के लिए सत्प्रवृत्ति का कारण बनता है (२८८५) ।" इस तरह अंतिम उपाय रूप साधारण द्रव्य में से उपाश्रय का जिर्णोद्धार कराना कहा, पर साधु-साध्वी वैयावच्च द्रव्य में से करना न कहा । कितने ही स्थानों में गुरुपूजन में प्राप्त द्रव्य एवं/या गुरु को कंबलादि बहोराने के चढ़ावों आदि की आय, जो शास्त्रानुसार जिनमंदिर जिर्णोद्धार या नवनिर्माण में ही इस्तेमाल की जा सकती है; उसके बदले वैयावच्च खाते में ले जाकर उसमें से उपाश्रय निर्माणादि में दी जाने की प्रवृत्ति भी हो रही है, यह बिल्कुल गलत है । ऐसे द्रव्य से निर्मित उपाश्रय में साधु-साध्वी या श्रावक-श्राविका, कोई भी ठहर नहीं सकता । अतः इस बारे में भी पूरी जाँच-पड़ताल कर लेनी हितावह है । | धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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