Book Title: Dharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Author(s): Dharmdhwaj Parivar
Publisher: Dharmdhwaj Parivar

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Page 111
________________ अनिवासी भी धर्मद्रव्य के उपभोग का दोष अवश्य प्राप्त करते हैं । धर्मद्रव्य का किसी भी रूप से उपभोग करनेवालों को दुर्गति को परंपरा भुगतनी पड़ती है । अतः जल्द से जल्द इस ऋण का ब्याज के साथ भुगतान कर दोषमुक्त बनना चाहिए। मंदिरजी में जलते दीपक की रोशनी घर में गिरने पर उस रोशनी में स्वयं का हिसाबकिताब लिखनेवाले को कैसे दुःखद फल भुगतने पड़े हैं, इस बारे में धर्मशास्त्रों का सद्गुरुओं के सानिध्य में वाचन-श्रवण करने से भी इस बात का अच्छा ज्ञान हो सकेगा। शंका-५८ : हमारे यहाँ एक पूजन पढ़ाया गया । जिसकी प्रेरिका एवं आगेवान थी एक साध्वीजी महाराज ! उन्होंने उस संदर्भ में एक झोली बनाकर भगवान को भिक्षा देने को प्रेरणा की । उसमें केवल रुपये ही डालने थे एवं लोगों ने वैसा ही किया । तो क्या यह उचित है ? क्योंकि भगवान तो भिक्षा हेतु झोली रखते नहीं एवं भिक्षा में रुपयेपैसे लेते नहीं, ऐसा हमने जाना है । तो ये पैसे कौनसे खाते में जमा करें ? समाधान-५८ : आप सूचित करते हो वैसे किसी भी पूजन में भगवान की भिक्षा एवं झोली की बात नहीं आती । अतः ऐसा यदि किया गया हो तो यह बिलकुल अनुचित है एवं भगवान की लघुता करनेवाली बात है । साध्वीजी भगवंत हो या साधु भगवंत हो, सुविहित प्रणालिका अनुसार प्रचलित पूजा-पूजन का ही वे केवल उपदेश दे सकते हैं । परंतु सीधे या आड़े रास्ते उस हेतु न तो प्रेरणा दे सकते हैं, न ही उस कार्य की आगेवानी ले सकते हैं । वर्तमान में श्रावक संघ में प्रवर्तमान शास्त्रीय मार्ग संबंधी भीषण अज्ञानवश ऐसी कई प्रवृत्तियाँ चल रही हैं । जो चलानी किसी के भी हित में नहीं है । अज्ञानादिवश ऐसा हो चूका ही है तब झोली की वह रकम देवद्रव्य में जमा कर जिनमंदिर के जीर्णोद्धारादि में ही लगाना हितावह है । भगवान भिक्षा हेतु झोली नहीं रखते और भिक्षा में रुपये-पैसे नहीं लेते, ऐसा आपका खयाल सही है । शंका-५९ : धार्मिक या अन्य फटी हुई किताबें कहाँ परठवें ? कैसे परठावें ? (इनका त्याग-व्यवस्था कहाँ-कैसे करें ?) समाधान-५९ : धार्मिक या अन्य फटी किताबें जब इस्तेमाल-योग्य न रहें तब उन्हें परठवने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं होता है । तब उन पुस्तकों को फाड़ कर छोटेछोटे टुकड़े करने चाहिए । फाड़ते समय व्यक्ति-पशु-पक्षी आदि के चित्र न फटे, इसका धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ? ९१ | Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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