Book Title: Dharmdravya ka Sanchalan Kaise kare
Author(s): Dharmdhwaj Parivar
Publisher: Dharmdhwaj Parivar

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Page 126
________________ साधारण खाते में कमी पड़ती हो तो उसके लिए दूसरी पानड़ी (टीप) करना अच्छा है, परन्तु स्वप्नों के घी की बोली के भाव २ । । ) के बदले ५) का भाव करके आधे पैसे देवद्रव्य में ले जाना उचित नहीं है । तथा यदि श्रीसंघ ऐसा करता है तो वह दोष का भागीदार है । ऐसा करने की अपेक्षा साधारण खाते अलग पानडी करना क्या बुरा है ? इसलिए स्वप्नों के निमित्त के पैसों को साधारण खाते में ले जाना हमको ठीक नही लगता है । हमारा अभिप्राय उसे देवद्रव्य में ही काम में लेने का है ।' (२) ‘साणंद से आचार्य महाराज श्री विजयमेघसूरीश्वरजी म. आदि की तरफ से - ' ‘बम्बई मध्ये देवगुरु भक्तिकारक सुश्रावक जमनादास मोरारजी योग धर्मलाभ । यहाँ सुखशाता है । आपका पत्र मिला । उसके सम्बन्ध में हमारा अभिप्राय यह है कि स्वप्नों बोली सम्बन्धी जो कुछ आय हो उसे देवद्रव्य के सिवाय अन्यत्र नहीं ले जाई जा सकती है। अहमदाबाद, भरुच, सूरत, छाणी, पाटण, चाणस्मा, महेसाणा, साणंद आदि बहुत से स्थानों में प्रायः ऊपर कही हुई प्रवृत्ति चलती है । यही धर्मसाधन में विशेष उद्यम रखें ।' द. : सुमित्रविजय का धर्मलाभ पू. महाराजश्री की आज्ञा से - द. : मुनि 'कुमुदविजयजी' १०६ (3) Jain Education International 'जैनाचार्य विजय नीतिसूरीश्वरजी आदि ठाणा १२ शान्ताक्रुझ मध्ये सुश्राव भक्तिकारक श्रावकगुण सम्पन्न शा. जमनादास मोरारजी जोग धर्मलाभ वांचना । देवगुरु प्रताप से सुखशाता है । उसमें रहते हुए आपका पत्र मिला । बांचकर समाचार जाने । पुनः भी लिखियेगा । पुरानी प्रणालिका अनुसार हम स्वप्नों की आय को देवद्रव्य में ले जाने के विचारवाले हैं । क्योंकि तीर्थंकर की माता स्वप्नों को देखती है, वह पूर्व में तीर्थंकर नाम बांधने से तीर्थंकर माता चवदह स्वप्न देखती है । वे च्यवन कल्याणक के सूचक । अहमदाबाद में सपनों की उपज को देवद्रव्य माना जाता है । यही जो याद करे उसे धर्मलाभ कहियेगा ।' द. : 'पंन्यास सम्मतविजयजी गणी के धर्मलाभ' धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करे ? उदयपुर आ.सु. ६ मालदास की शेरी For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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