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आए, धूप बिना की छाँववाली जगह हो और वहाँ कोई पशु आदि आकर पुष्पों को खा
न जाए ।
शंका- ५४ : पूज्य साध्वीजी महाराज पुरुषों के समक्ष पाट पर बैठकर या नीचे बैठकर भी क्या प्रवचन कर सकते हैं ?
समाधान-५४ : साध्वीजी महाराज पुरुषों के समक्ष पाट पर बैठकर या नीचे बैठकर भी प्रवचन नहीं दे सकते । प्रवचन करने का अधिकार 'प्रकल्प यति' का है । साध्वीजी प्रकल्प यति नहीं होते, अतः वे पुरुषों के समक्ष प्रवचन नहीं कर सकते। यह शास्त्र मर्यादा है ।
शंका-५५ : साधर्मिक-वात्सल्य में बूफे-भोज कर सकते हैं क्या ? उस समय मानों 'रामपात्र' हाथ में ले खड़े हैं, इस तरह थाली / डीश हाथ में ले कतार में खड़े रह सकते हैं क्या ?
समाधान-५५ : वर्तमान समय में कई अनर्थकारी रीतें धर्मकार्यों में भी प्रविष्ट कर गई हैं, जो जैन धर्म की मर्यादा का भंग करने वाली हैं । साधर्मिक वात्सल्य, संघ भोज या प्रभावना हो, तब 'साधर्मिक-भक्ति' का लाभ लेना, 'प्रभावना का लाभ लेकर जाइए', ऐसा कहा जाता है, यह बिलकुल उचित नहीं है । ' लाभ लीजिए' ऐसा नहीं कहा जा सकता, बल्कि ‘लाभ दीजिएगा' ऐसे कहना चाहिए । 'प्रभावना का लाभ लेकर जाइए' ऐसे नहीं कह सकते, पर 'प्रभावना का लाभ प्रदान करने पधारिएगा' ऐसे बोलना चाहिए।
साधर्मिक जीमने हेतु पधारें तब उनकी अगवानी करनी चाहिए । दूध से उनके पाँव धोने चाहिए । उचित आसन पर उन्हें बिठाना चाहिए । बहुमानपूर्वक परोसना चाहिए उचित तौर-तरिके से आदरपूर्वक आग्रह ( मनुहार ) करनी चाहिए । जो कुछ वेलेवें उसका अनुमोदन होना चाहिए । वे पधारते हों, तब 'आपने हमें लाभ देकर बड़ा उपकार किया, फिर से लाभ दीजिएगा,' ऐसी विनंती करनी चाहिए ।
साधर्मिक-वात्सल्य करनेवाला व्यक्ति, जितने भी पुण्यात्मा खाना खा कर पधारें, उनका ऋणभार मस्तक पर चढ़ाएँ । साधर्मिक - वात्सल्य में आनेवाले भी सिर्फ खाने की भावना से ही न आएँ । साधर्मिक की भावना का आदर सम्मान करने हेतु आएं । उचित मर्यादापूर्वक रहें । खाने की आदतों के वशीभूत न बनें । कोई चीज न माँगें । कोई चीज रह गई तो मन में न लाएं । खिलाने वाला 'लीजिए-लीजिए' कहे तब सहजता से,
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धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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