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भयंकर नुकसानों के बारे में दर्द भरे शब्दों में प्रकाश डाला है । यह प्रवचन 'दिव्यदर्शन' साप्ताहिक में भी शब्दशः मुद्रित हुआ है । संयमप्रेमी वयपर्यायवृद्ध पू.आ.श्री विजय रामसूरिजी महाराज ने (डहेलावाला) भी व्हील-चेयर के उपयोग के प्रति सख्त नाराजगी एवं असहमति बार-बार दर्शाई है ।
आज व्हील-चेयर के लिए वैयावच्च की रकम आवंटित की जाएगी तो कल मोटरकार अथवा रेल्वे आदि के लिए भी वैयावच्च की रकम के उपयोग करने की बात आएगी । इसलिए ऐसे अनिष्टों में साधु-साध्वी वैयावच्च के पैसों का उपयोग न करना ही हितकर है।
शंका-३४ : इन्द्रमाला आदि की बोलियां यतियों के समय में शुरु हुई हैं। ऐसा कुछ लोग कहते हैं - यह बात सही है ?
समाधान-३४ : इन्द्रमाला आदि की बोलियां-उछामणी की प्रथा काफी प्राचीन है । कई शास्त्रों में इससे सम्बंधित उल्लेख देखने को मिलते हैं । ऐतिहासिक प्रबंध, चरित्र तथा पट्टावलियों में भी अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं ।
कलिकाल सर्वज्ञ पू.आ.श्री हेमचंद्रसूरीश्वरजी महाराजा की निश्रा में महाराजकुमारपाल के संघ के अवसर पर शत्रुजय-१, गिरनार-२ तथा प्रभासपाटण-३ में उछामणी द्वारा तीन बार संघमाला गृहीत करके पहनने-पहनाने की क्रिया हुई थी । इसलिए उस समय में (विक्रम की बारहवी-तेरहवीं सदी) उछामणी की प्रथा अत्यंत दृढमूल एवं सार्वत्रिक बनी थी । इस माला का द्रव्य विविधतीर्थ के देवद्रव्य में जमा हुआ है । .
'युगप्रधान गुर्वावलो' में चौदहवीं सदी के छ'री पालक संघों के तीर्थयात्रा के अवसर पर उछामणी के तथा उनका द्रव्य देवद्रव्य में जमा होने के अनेक उल्लेख मिले हैं । यहां इनमें से दो-चार उल्लेख का वर्णन करते हैं ।
विक्रम संवत्-१३२९ में पालनपुर से संघ निकला । यह संघ तारंगा आया । यहां इन्द्रमाला आदि की आय ३००० द्रम्म हुई थी । आगे खंभात आने पर पुनः इन्द्रमाला आदि होने पर आय ५००० द्रम्म हुई थी । शत्रुजय तीर्थ में १७,००० द्रम्म की आय हुई थी । गिरनार पर ७,०९७ द्रम्म की आय हुई थी । यह आय अक्षयपद पर अर्थात् गुप्त भंडार में हुई थी । गुप्त भंडार (नीवि) देवद्रव्य क होता था ।
अलग-अलग उछामणी द्वारा जो आय देवद्रव्य में हुई थी, उसका संक्षिप्त उल्लेख
| धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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