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समाधान-४७ : पद्मावती पूजन पढ़ाना योग्य नहीं है । परमतारक परमात्मा की भक्ति को गौण कर देवदेवियों का पूजन पढ़ाना; इसमें त्रिलोकीनाथ परमात्मा की आशातना होती है । यह जैसे शास्त्रदृष्टि से योग्य नहीं, वैसे व्यवहार से भी योग्य नहीं है ।
शंका- ४८ : जैन मंदिरों की ध्वजा में कहीं-कहीं हरे रंग का पट्टा दिखने लगा है । तो कुछ जैन मंदिरों की ध्वजा पूरी हरे रंग की ही दिखाई देती है । इसका क्या कारण है ? क्या इस तरह रख सकते हैं ?
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समाधान-४८ : जैन मंदिरों की ध्वजा में हरा रंग नहीं रख । मूलनायक प्रभु यदि परिकर वाले हों तो वह परमात्मा की अरिहंत अवस्था गिनी जाती है । अतः बीच में सफेद एवं आजूबाजू में लाल पट्टा तथा मूलनायक यदि परिकर रहित हों याने कि सिद्धावस्था वाले हों तो बीच में लाल एवं आजूबाजू में सफेद पट्टा रखने की विधि है । पर कहीं भी हरा पट्टा रखने की बात नहीं आती । सौराष्ट्र के किसी गाँव में हरी ध्वजा लगाई गई ऐसा सुना जाता है । उसी के अंध अनुकरण रूप अन्य संघों में भी यह सिलसिला शुरू हुआ है और यही प्रवाह बढ़ते बढ़ने कुछेक जिनालयों की ध्वजा में आखिर एक त्रिकोणाकृति हरे पट्टे को रखने का काम हुआ है । यह बिल्कुल गलत है । सुना गया है कि भावनगर में बनती ध्वजाओं में ऐसा हरा पट्टा रखा जा रहा है । अतः जो भी महानुभाव वहाँ से ध्वजाएँ मंगवाते हों, उन्हें उक्त स्थान पर सूचना देकर ऐसा हरा पट्टा निकलवा देना चाहिए ।
यदि इस कार्य में उपेक्षा की जाए, तो धीरे-धीरे सर्वत्र ऐसी अनुचित प्रवृत्ति शुरु हो जाएगी । फिर तो अविधि ही विधि के रूप में पहचानी जाएगी । अतः श्री संघों को समय रहते चेत जाना चाहिए और इसे रोकना चाहिए ।
और
शंका-४९ : साधु-संस्था में कहीं-कहीं यांत्रिक, इलेक्ट्रिक, इलेक्ट्रानिक साधनों का साधु जीवन हेतु सर्वथा अनुचित कहे जाएं ऐसे साधनों का उपयोग होने लगा है, इस कारण से शीथिलता का दायरा बढ़ रहा है, परिणामतः जैनशासन की घोर निंदा होती है तो इसे रोकने हेतु हम श्रावकों को क्या करना चाहिए ?
समाधान-४९ : एक बात समझ लें कि ज्यादातर साधु दीक्षित होते हैं, सो
धर्मद्रव्य का संचालन कैसे करें ?
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