Book Title: Dharma Sangraha Part 2
Author(s): Chandanbalashreeji
Publisher: Bhadrankar Prakashan
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३५१
परिशिष्टम् [३] धर्मसंग्रहवृत्तिगतोद्धरणानामकाराद्यनुक्रमः ॥]
[८०५ आयरिअगणीइड्डी, [बृ.क.भा./६९२] ७१३ | आलू तह पिंडालू, आयरिअगिलाणां, [ओ.नि./३५१] ५८७ [सं.प्र.श्रा.९४/प्र.सा.२४०] १३२ आयरिआइ सगच्छे, [श्रा.जी./१२] ४३५ आलोअणं अकिच्चे, [पञ्चा./१५/२]४३२ आयरिए अ गिलाणे,
आलोअणं अदाउं, [पञ्चा.१५/३९] ४३९ [ओ.नि./७१६] ५७८ आलोअणपडिक्कमणे [प्र.सा./७५०]७२२ आयरिय उवज्झाए, [प्रा.सा.द्वा./१९] ७६२ आलोअणापरिणओ, [ श्रा.जी./३९] ४३५ आयरियगिलाणाई [य.दि./१४] ४९७ आलोइऊण दोसे, [प.व./४६६] ५९२ आयरियग्गहणेणं [व्य.भा./४६८५] २५७ | आलोइत्ता सव्वं, आयरियनिसिज्जाए [सामा./द्वा.११] ७३३ | [ओ.नि./५२०, प.व./३३७] ५५३ आयरिया इह पुरओ, [य.दि./३३०] ५९० | आलोच्यावग्रहयाञ्चाआयहिअपरिन्ना [प.व./५५५] ५०९
। [यो.शा.१/२८] ६७२ आया खलु सामाइअं [आ.नि./७९०] १५१ आलोयणयाए णं भंते ! [उत्त.२९अ.] ४४० आयाणे निक्खिवणे, [ओ.नि./७१०]५७७ | आलोयणाणुलोमं, [पञ्चा.१५/१७] ४३७ आयादर्द्ध नियुञ्जीत, [ ]
आवंतिकेआवंति [आचा.५/१] ३४ आयादर्द्धं नियुञ्जीत, [ ]
१३ आवयहिं पि पढिज्जइ, [न.फ.कु./६]२१८ आयारवमाहारव, [ श्रा.जी./९] ४३४ आवस्सइं च णितो, आयारस्स उ उवरिं, [व्य.भा.३/१७६ ]७४०
[आ.नि./६९२पू.] ६५० आयारस्स उ मूलं, [बृ.वं.भा./३] ३१६ | आवस्सयसज्झाए, [सं.प्र.गु./१३] ३०३ आयावयंति गिम्हेसु, [द.वै.३/१२] ५१० आवस्सयस्स समए, [य.दि./१३] ४९५ आरंभिअअणुओगं, [ य.दि./१५७] ५१७ | आवस्सयस्स समए, [ ]
आसयस समा | 1
३६९ आरभडा संमद्दा, [ओ.नि./२६६] ५०१ | आवस्सयाइआई, [सं.प्र.गु./१४] ३०३ आरंभे च्चिअ दाणं, [पञ्चा.९-१२] ४२७ | आवस्सिअं भणित्ता, [ य.दि./१७५] ५२३ आरात्रिकं जिनाचार्याः,
आवस्सिआ उ आवस्सएहिं [प.प./११/७६] ४२८
[आ.नि./६९४] ६५१ आरुहणे ओरुहणे, [बृ.क.भा./९७५]१३८ आवस्सियाए जस्स य, [प.व./२९३] ५२० आरोग्गसारिअं माणुसत्तणं
आश्रयन् दक्षिणां शाखां, ___ [सं.प्र.श्रा.६३] १२२
[वि.वि.१/८३] २२७ आर्द्रः कन्दः समग्रोऽपि,
आसणगओ न पुच्छिज्जा, [यो.शा.३/४४] १३३
[उत्त.१/२२] ५०९ आोऽशुष्कः कन्दः,
आसणेण निमंत्तेता, [श्रा.दि./१७३] ३६१ [यो.शा.वृ३/४४] १३३ | आसनस्थपदो [नी.शा.]
३६६ आलंबणमलहंती [क.भा./१२०] ५८ | | आसनाभिग्रहो भक्त्या, आलंबणे विसुद्धे,
[यो.शा./३/१२६] ३६१ [बृ.क.भा./३९८९] ५८६ | आसन्नसिद्धिआणं, [सं.प्र.देवा.१९३] २०२
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